हमारे हिन्दू धर्म में Vat Savitri Vrat का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है| इस व्रत को शादीशुदा महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए रखती है| इस दिन महिलाएं बरगद की पूरी विधि-विधान के साथ पूजा करके ही अपना व्रत तोडती है|
अखंड सौभाग्यवती आशीर्वाद प्रदान करने वाला वट सावित्री व्रत
यह व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को रखा जाता है| इस व्रत में बरगद की पूजा का बहुत ही महत्व माना गया है तथा लोगों का कहना है जो भी महिलाये इस व्रत को पूरी निष्ठा के साथ रखकर बरगद की पूजा करके उसकी फेरी देती है उनका शादीशुदा जीवन बहुत ही अच्छा व्यतीत होता है और पति की आयु भी बढ़ती है|
तो चलिए आज हम आपको इस लेख के माध्यम से इस व्रत का महत्व और इसके पीछे की कहानी बताने जा रहे है कि आखिर यह व्रत क्यों रखा जाता है?
वट सावित्री व्रत –
इस व्रत का सुहागन स्त्रियों के लिए बहुत ही ज्यादा महत्व होता है| मान्यता है कि जो भी स्त्रियाँ वट सावित्री व्रत के नियम का पालन करके वट सावित्री व्रत की कथा कहती या सुनती है| उनके पति की आयु लंबी और शादीशुदा जीवन खुशहाल रहता है|
इस व्रत में बरगद के पेड़ का बहुत ही ज्यादा महत्व होता है क्योंकि इसका नाम ही वट सावित्री व्रत (Vat Savitri Brata) है| वट का मतलब होता है बरगद ,इसलिए इस वट को बरगद अमावस्या भी कहते है|
धार्मिक ग्रन्थ के अनुसार यह माना जाता है कि बरगद के पेड़ में ब्रह्मा ,विष्णु ,महेश तीनों देवता वास करते है| इसलिए जब महिलाये बरगद को जल चढ़कर ,कुमकुम ,अक्षत लगाकर पूजा करती है तो उन्हें तीनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनका सुहाग अखंड रहता है|
वट सावित्री व्रत की पौराणिक कथा (Vat Savitri Vrat Katha) –
Vat Savitri Vrat Katha के अनुसार – अश्वपति नाम के भद्र देश के एक राजा थे| जिनके कोई संतान नहीं थी| तो राजा ने संतान प्राप्ति के लिए सावित्रीदेवी की कठिन तपस्या की| उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर सावित्रीदेवी ने उन्हें संतान प्राप्ति का वरदान दिया|
तब देवी की कृपा से राजा के यहाँ एक कन्या ने जन्म लिया ,जिसका नाम सावित्री रखा गया| जब सावित्री विवाह योग्य हुई तो उसके योग्य कोई वर न मिलने के कारण राजा बहुत परेशान रहने लगे|
तब एक दिन राजा ने सावित्री से कहाँ कि तुम अपना वर स्वयं खोज लो| पिता की आज्ञा पाकर सावित्री तपोवन के लिए निकल गई| वहां उनकी भेट साल्व देश के राजा द्युमत्सेन से हुई| जिनका पुत्र सत्यवान था| सत्यवान को देखते ही सावित्री ने उसे पति के रूप में चुन लिया|
जब इस बात का पता नारदजी को चला तो वे राजा अश्वपति के पास गए और कहाँ – हे राजन सत्यवान की उम्र बहुत कम है| उसकी मृत्यु विवाह के एक वर्ष के पश्चात् ही हो जाएगी ,इसलिए अपनी कन्या के लिए कोई अन्य वर चुन लो|
नारदजी की भविष्यवाणी सुनकर राजा व्याकुल हो गये और उन्होंने सावित्री को सत्यवान से विवाह करने को मना किया| लेकिन सावित्री ने किसी की एक न सुनी और सत्यवान से ही विवाह कर लिया|
धीरे-धीरे समय बीतने लगा और सत्यवान की मृत्यु का समय करीब आने लगा ,क्योंकि सावित्री को नारदजी ने सत्यवान की मृत्यु समय पहले से ही बता दिया था| इसलिए सावित्री ने मृत्यु के तीन दिन पहले से ही उपवास करना शुरू कर दिया और निश्चित तिथि पर ही पितरों का पूजन किया|
सत्यवान प्रतिदिन लकड़ी काटने जंगल जाया करते थे| जिस दिन उनकी मृत्यु का समय निश्चित था उस दिन भी वे लकड़ी काटने जंगल गए लेकिन उस दिन उनके साथ सावित्री भी गई|
जैसे ही सत्यवान बरगद के पेड़ पर लकड़ी काटने के लिए चढ़े ,तो उनके सिर में बहुत तेजी से दर्द होने लगा और वे व्याकुल होकर नीचे उतर आए| सत्यवान को व्याकुल देखकर सावित्री समझ गई की उसके पति का अंतिम समय निकट आ गया है|
सावित्री सत्यवान का सिर अपनी गोद में रख लेती है तभी यमराज सत्यवान के प्राण हरकर ले जाने लगते है तो सावित्री भी यमराज के पीछे-पीछे चलने लगती है|
सावित्री को यमराज बहुत समझाते है कि तुम्हारे पति की आयु इतनी ही थी ,लेकिन सावित्री यमराज की एक नहीं सुनती है और अपने पति के प्राण ले जाने से यमराज को रोकती है|
सावित्री की निष्ठा तथा पति धर्म देखकर यमराज बहुत प्रसन्न होते है और कहते है – देवी अपने पति के प्राणों को छोड़कर तुम कोई भी वरदान मांग लो|
तब सावित्री अपने सास-ससुर के लिए दिव्यज्योति मांगती है क्योंकि वे दोनों अंधे थे| यमराज उसकी इच्छा पूर्ति कर देते है और आगे बढ़ते है तो सावित्री फिर से पीछे आने लगती है| यमराज सावित्री को बहुत समझाते है कि देवी घर लौट जाओ| लेकिन सावित्री ने कहाँ –पति के बिना मेरा जीवन व्यर्थ है इसलिए मैं उनके साथ ही जाऊँगी|
तब यमराज ने पुन: प्रसन्न होकर वरदान मांगने को कहाँ – तो सावित्री ने इस बार सौ पुत्र होने का वरदान माँगा और यमराज ने उसे यह वर दे दिया| जब यमराज आगे बढ़ने लगे तो सावित्री ने कहाँ – अपने मुझे सौ पुत्र होने का वरदान तो दे दिया लेकिन पति के बिना मैं सौ पुत्रों की माता कैसे बन सकती हूँ|
इसलिए आपको मेरे पति के प्राण लौटने होंगे नहीं तो आपका वरदान मिथ्या हो जायेगा| यह सुनकर यमराज सावित्री के पति के प्राण लौटा देते है और चले जाते है| सावित्री उसी बरगद के पेड़ के नीचे आ जाती है जहाँ उसके पति का मृत शरीर पड़ा था|
वह देखती है कि उसका पति जीवित हो जाता है और दोनों प्रसन्न होकर अपने राज्य वापस लौट जाते है| इस प्रकार सावित्री ने अपने पति धर्म व्रत के प्रभाव से न केवल अपने पति के प्राण यमराज से वापस लिए बल्कि अपने सास-ससुर के लिए दिव्यज्योति भी मांग ली|
कहते है तभी से शादीशुदा स्त्रियाँ वट सावित्री व्रत को रखकर बरगद की पूजा करने लगी ताकि जैसे सावित्री ने अपने पति की यमराज से रक्षा की वैसे ही उनके पति की आयु भी लंबी हो सके|
वट सावित्री व्रत की विधि व पूजन (savitri brata puja vidhi) –
सभी जगह वट सावित्री व्रत की पूजा विधि अलग-अलग होती है सबके अपने-अपने अलग-अलग नियम भी होते है| लेकिन मैं आपको अपने इधर की पूजन विधि बताने जा रही हूँ| जो इस प्रकार की जाती है –
• जिस दिन बरगद अमावस्या होती है उसके एक दिन पहले ही शादीशुदा महिलाएं अपने हाथों व पैरों में मेंहदी लगा लेती है|
• व्रत के दिन महिलाएं सुबह जल्दी उठकर अपने घर की अच्छे से साफ-सफाई करके स्नान कर लेती है|
• उसके बाद वे बरगद की पूजा करने के लिए मीठे आटे के छोटे-छोटे गोल लड्डू जैसे बनाती है और उसे गर्म तेल में तलती है ,जिसे हम लोग बरगदा कहते है|
• यह बरगदा 21 बनाना चाहिए क्योंकि 7-7 बरगदा की दो लड़ीं बनाई जाती है जो पूजा करने के बाद खाते है और बाकी के बचे 7 बरगदा को बरगद के पेड़ पर पूजा करते समय चढ़ाया जाता है|
• यह बनाने के बाद पका भोजन बनाया जाता है जैसे पूड़ी ,सब्जी खीर आदि|
• अब बरगद की पूजा करने के लिए थाली सजाते है, जिसमे हल्दी, कुमकुम, अक्षत, रोली, फूल, साथ साबुत चने, 7-7 बरगदा से बनी दो लड़ी, 7 बरगदा चढ़ाने के लिए, पीले धागे से बनी दो मालाएं ( जिन्हें सात बार पीला धागा लपेटकर बनाया जाता है), घी का दीपक , अगरबत्ती, दो पूड़ी, माचिस, आलता, 7 साबुत चने और तांबे के लोटे में जल रख लेते है|
• अब बरगद के पेड़ पर जाकर जल चढ़ाकर हल्दी, कुमकुम, आलता और अक्षत लगाकर फूल चढ़ाते है|
• घी का दीपक और अगरबत्ती जलाकर पूजा करते है और बरगद के पेड़ पर बरगदा पूड़ी व पीले धागे से बनी माला चढ़ाते है|
• जो कुमकुम वट के पेड़ पर लगाते है उसे थोड़ा सा लेकर अपने माथे और मांग में लगा लेते है|
• इसके बाद बरगद के पेड़ की सात बार परिक्रमा करके रोली को लपेटते है|
• अब इस व्रत की कथा कहते है या फिर सुनते है|
• जब Vat Savitri कथा समाप्त हो जाए तो वट के पेड़ को हाथ जोड़कर प्रार्थना करते है कि भगवान उनके पति को लंबी आयु प्रदान करे और उनका वैवाहिक जीवन अच्छा हो|
• इसके बाद बरगद की कोंपल लेकर उसके 7 छोटे-छोटे भाग कर लेते है ,इन साथ भाग को थाली में रखे 7 चने के साथ मिलाकर एक बार में ही पानी या शरबत के साथ निगल लेते है|
• अब घर पर आकर अपने पति और सास-ससुर के पैर छुकर व्रत का समापन करके भोजन कर लेते है|
• जो अपने पीले धागे की माला बनाई थी उसे बरगद पर चढाने के बाद अपने गले में धारण कर लेते है|
इस प्रकार इस व्रत को किया जाता है| अगर आपके आसपास बरगद का पेड़ न हो तो बरगद की छोटी सी टहनी माँगा कर उसकी घर पर भी पूजा कर सकते है| सावित्री व्रत कथा की बुक आप घर बैठे भी मंगा सकते है।
बहुत सी महिलाएं पूरा दिन उपवास रखकर शाम को केवल मीठा भोजन करती है| लेकिन कई महिलाएं बरगद की पूजा करने और कथा सुनने के बाद ही अपना उपवास तोड़ देती है| सबकी अपनी-अपनी श्रध्दा होती है लेकिन इस Vat Savitri पूजा का फल सभी को समान ही प्राप्त होता है| यह हर भारतीयों के लिए उतना ही महत्व रखता है जितना की Karwa Chouth
Also Read – करवाचौथ पर चाँद को छलनी से क्यों देखते है – KarvaChauth 2022
सम्बंधित प्रश्न –
2024 में वट सावित्री पूजा कब है?
इस साल यह 26 May 2025 को पड़ रहा है।
वट सावित्री व्रत पूजा कब है?
26 May 2025, दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा।
वट सावित्री व्रत कैसे करे?
अपने नजदीकी वट वृक्ष के पास जाकर जल अर्पित करें और माता सावित्री को वस्त्र व सोलह श्रृंगार चढाएं। फल-फूल अर्पित करने के बाद वट वृक्ष को पंखा झेलें। रोली से पेड़ की परिक्रमा करें और फिर व्रत कथा को ध्यानपूर्वक सुनें। इसके बाद दिन भर व्रत रखें।
वट सावित्री व्रत में क्या क्या लगता है?
वट सावित्री पूजन में 24 बरगद के फल, 24 पूरियां अपने आंचल में रखकर वट वृक्ष का पूजन किया जाता है। पूजा में 12 पूरियां और 12 बरगद फल को हाथ में लेकर वट वृक्ष पर अर्पित करें। इसके बाद एक लोटा शुद्धजल चढ़ाएं, फिर वृक्ष पर हल्दी, रोली और अक्षत से स्वास्तिक बनाकर पूजन करें।
वट सावित्री की पूजा में क्या क्या सामग्री लगती है?
Vat Savitri पूजन के लिए माता सावित्री की मूर्ति, बांस का पंखा, बरगद पेड़, लाल धागा, कलश, मिट्टी का दीपक, मौसमी फल, पूजा के लिए लाल कपड़े, सिंदूर-कुमकुम और रोली, चढ़ावे के लिए पकवान, अक्षत, हल्दी, सोलह श्रृंगार व पीतल का पात्र जल अभिषेक के लिए होनी चाहिए.
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