गरुण पुराण, वेदव्यास जी द्वारा रचित 18 पुराणो में से एक है। गरुड़ पुराण में 279 अध्याय तथा 18000 श्र्लोक हैं। इस ग्रंथ में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन, मरने के बाद आत्मा का रहस्य आदि के बारे में विस्तार से बताया गया है। किसी की मृत्यु के बाद घर-परिवार के लोग ब्राह्मण द्वारा ये ग्रंथ सुनते हैं। इस पुराण में भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को मृत्यु से संबंधित अनेक गुप्त बातें बताई हैं। मृत्यु के बाद जीवात्मा यमलोक तक किस प्रकार जाती है.

What happens after death? –

इसका विस्तृत वर्णन गरुड़ पुराण में मरने के बाद का सच बताया गया है। आज हम आपको गरुड़ पुराण में लिखी कुछ ऐसी ही खास व रोचक बातें / मरने के बाद की ज़िन्दगी बता रहे हैं-

मरने से पहले क्या होता है?

गरुड़ पुराण के अनुसार, जिस मनुष्य की मृत्यु होने वाली होती है, वह बोलना चाहता है, लेकिन बोल नहीं पाता। अंत समय में उसकी सभी इंद्रियां (बोलने, सुनने आदि की शक्ति) नष्ट हो जाती हैं और वह जड़ अवस्था में हो जाता है, यानी हिल-डुल भी नहीं पाता। इसके बाद उसके मुंह से झाग निकलने लगता है और लार टपकने लगती है।

मृत्यु के बाद आत्मा का क्या होता है?

उस समय दो यमदूत आते हैं। उनका चेहरा बहुत भयानक होता है, नाखून ही उनके शस्त्र होते हैं। उनकी आंखें बड़ी-बड़ी होती हैं। उनके हाथ में दंड रहता है। यमराज के दूतों को देखकर प्राणी भयभीत होकर मल-मूत्र त्याग करने लग जाता है। उस समय शरीर से अंगूष्ठमात्र (अंगूठे के बराबर) जीव हा हा शब्द करता हुआ निकलता है, जिसे यमदूत पकड़ लेते हैं।

यमराज के दूत उस शरीर को पकड़कर उसी समय यमलोक ले जाते हैं, जैसे- राजा के सैनिक अपराध करने वाले को पकड़ कर ले जाते हैं। उस पापी जीवात्मा को रास्ते में थकने पर भी यमराज के दूत डराते हैं और उसे नरक में मिलने वाले दुखों के बारे में बार-बार बताते हैं। यमदूतों की ऐसी भयानक बातें सुनकर पापात्मा जोर-जोर से रोने लगती है, किंतु यमदूत उस पर बिल्कुल भी दया नहीं करते।

क्या आत्मा होती है इन हिंदी?

इसके बाद वह अंगूठे के बराबर शरीर यमदूतों से डरता और कांपता हुआ, अपने पापों को याद करते हुए चलता है। आग की तरह गर्म हवा तथा गर्म बालू पर वह जीव चल नहीं पाता है और वह भूख-प्यास से तड़पता है। तब यमदूत उसकी पीठ पर चाबुक मारते हुए उसे आगे ले जाते हैं। वह जीव जगह-जगह गिरता है और बेहोश हो जाता है। फिर उठ कर चलने लगता है। इस प्रकार यमदूत जीवात्मा को अंधकार वाले रास्ते से यमलोक ले जाते हैं।

गरुड़ पुराण के अनुसार, यमलोक 99 हजार योजन (योजन वैदिक काल की लंबाई मापने की इकाई है। एक योजन बराबर होता है चार कोस यानी 13-16 कि.मी) है। वहां यमदूत पापी जीव को थोड़ी ही देर में ले जाते हैं। इसके बाद यमदूत उसे सजा देते हैं।

मरने के बाद आत्मा कब तक भटकती है?

इसके बाद वह जीवात्मा यमराज की आज्ञा से यमदूतों के साथ फिर से अपने घर आती है, घर आकर वह जीवात्मा अपने शरीर में पुन: प्रवेश करने की इच्छा करती है परंतु यमदूत के बंधन से वह मुक्त नहीं हो पाती और भूख-प्यास के कारण रोती है। पुत्र आदि जो पिंड और अंत समय में दान करते हैं, उससे भी प्राणी को तृप्ति नहीं होती, क्योंकि पापी लोग को दान, श्रद्धांजलि द्वारा तृप्ति नहीं मिलती। इस प्रकार भूख-प्यास से युक्त होकर वह जीव यमलोक जाता है

इसके बाद पापात्मा के पुत्र आदि परिजन यदि पिंडदान नहीं देते हैं, तो वह प्रेत रूप हो जाती है और लंबे समय तक सुनसान जंगल में रहती है। गरुड़ पुराण के अनुसार, मनुष्य की मृत्यु के बाद 10 दिन तक पिंडदान अवश्य करना चाहिए। उस पिंडदान के प्रतिदिन चार भाग हो जाते हैं। उसमें दो भाग तो पंचमहाभूत देह को पुष्टि देने वाले होते हैं, तीसरा भाग यमदूत का होता है तथा चौथा भाग प्रेत (आत्मा) खाता है। नौवें दिन पिंडदान करने से प्रेत (आत्मा) का शरीर बनता है, दसवें दिन पिंडदान देने से उस शरीर को चलने की शक्ति प्राप्त होती है।

शव को जलाने के बाद पिंड से अंगूठे के बराबर का शरीर उत्पन्न होता है। वही, यमलोक के मार्ग में शुभ-अशुभ फल को भोगता है। पहले दिन पिंडदान से मूर्धा (सिर), दूसरे दिन से गर्दन और कंधे, तीसरे दिन से ह्रदय, चौथे दिन के पिंड से पीठ, पांचवें दिन से नाभि, छठे और सातवें दिन से कमर और नीचे का भाग, आठवें दिन से पैर, नौवें और दसवें दिन से भूख-प्यास आदि उत्पन्न होती है। ऐसे पिंड शरीर को धारण कर भूख-प्यास से व्याकुल प्रेत ग्यारहवें और बारहवें दिन का भोजन करता है।

यमदूतों द्वारा तेरहवें दिन प्रेत (आत्मा) को बंदर की तरह पकड़ लिया जाता है। इसके बाद वह प्रेत भूख-प्यास से तड़पता हुआ यमलोक अकेला ही जाता है। यमलोक तक पहुंचने का रास्ता वैतरणी नदी को छोड़कर छियासी हजार योजन है। 47 दिन लगातार चलकर आत्मा यमलोक पहुंचती है। इस प्रकार मार्ग में सोलह पुरियों को पार कर पापी जीव यमराज के घर जाता है।

इन सोलह पुरियों के नाम इस प्रकार हैं-

  1. सौम्य
  2. सौरिपुर
  3. नगेंद्रभवन
  4. गंधर्व
  5. शैलागम
  6. क्रौंच
  7. क्रूरपुर
  8. विचित्रभवन
  9. बह्वापाद
  10. दु:खद,
  11. नानाक्रंदपुर
  12. सुतप्तभवन
  13. रौद्र,
  14. पयोवर्षण
  15. शीतढ्य
  16. बहुभीति

इन सोलह पुरियों को पार करने के बाद आगे यमराज पुरी आती है। पापी प्राणी यम, पाश में बंधे हुए मार्ग में हाहाकार करते हुए अपने घर को छोड़कर यमराज पुरी जाते हैं।

मरने के बाद क्या होता है? (किसी उपनिषद के माध्यम से -शायद )

जैसी ही व्यक्ति की आत्मा शरीर से निकलती है तो यह वायु तत्व के रूप में होती है।  यह सूक्ष्म शरीर 13 दिनों तक शरीर के मोह, और दुःख में दुखी रहती है। शरीर के अग्नि में दहन से यह आत्मा धुएं का रूप लेकर यह अपने कर्मो की वासना के अनुसार यह अंधकार में उसी वासना को खोजने के चक्कर में दक्षिण दिशा अर्थात पृथ्वी के निचले ध्रुव की ओर अंधकार में भटक जाती है।

लेकिन

अगर जीवन में प्राणी ने ज्ञान प्राप्त किया है, भगवान का नाम लिया है, जीवन और परिवार से ज्यादा आशक्ति नहीं है तो यह वासना को त्यागकर हिमालय की ओर उत्तर दिशा में आगे अर्थात पृथ्वी के ऊपरी ध्रुव की ओर बढ़ती है।

वहां यह वायु कुहरे में बदलती है और कुहरा बादल में बदलता है और बादल पानी में बदलता है उस समय यह जल तत्व को ग्रहण करती है। फिर यह पानी प्रकृति द्वारा वापस पृथ्वी पर गिरता है, जहाँ यहाँ पृथ्वी तत्व को भी प्राप्त करती है। अब यह वायु, जल, और पृथ्वी तत्व के साथ सूर्य की रौशनी (अग्नि) के माध्यम से अन्न या जीव के रूप में शरीर लेती है।

जब इसी अन्न को हवन यज्ञ  में प्रविष्ट कराया जाता है तो यह अग्नि रूप लेकर सूर्य की ओर बढ़ती है। सूर्य इसी ऊर्जा को चंद्रदेव के शुक्लपक्ष के माध्यम से उस रास्ते पर भेजता है। इसलिए शुक्लपक्ष चंद्र की रौशनी के माध्यम से पृथ्वी पर जीववर्षा करता है और सात्विक जीवों के मन को शक्ति प्रदान करता है। तो वही कृष्ण पक्ष का चंद्र जो आत्माये अंधकार में खो जाती है उन्हें शक्ति प्रदान करता है।

इसलिए अमावश पर घनी अंधकार के समय आत्मा बलवान रहती है तो वही पूर्णिमा पर सात्विक शक्तियां बलवान होती है।

Disclaimer – यह जानकारी प्रमाणित और सत्यापित नहीं है, पब्लिक डोमेन में उपलब्ध जानकारी के माध्यम से लिखा गया है। अपने विवेक का इस्तेमाल करे और किसी संत परम्परा के गुरु से प्रश्न करे।

ऐसी जानकारियों या Hindi me Advice के लिए Hindi Hai वेबसाइट पर समय समय पर आते रहे।

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FAQs –

मनुष्य मरने के बाद क्या बन जाता है?

व्यक्ति की आत्मा आने सूक्ष्म शरीर के साथ 12 दिन तक पृथ्वी पर रहती है। इसमें से पंचतत्वों में से पृथ्वी तत्व नहीं होता है।

मृत्यु के बाद आत्मा कितने दिन तक घर में रहती है?

स्त्री की आत्मा 11 दिन तक और पुरुष की आत्मा 12 दिन तक अपने सगे सम्बन्धियों के आस पास देखती सुनती रहती है।

मरने के बाद हमारा क्या होता है?

जीवन के दौरान जिस प्रकार के आचरण होते है, और अंत समय जिसका विचार बार बार आये मनुष्य उसी योनि को प्राप्त होता है।

मरने पर सबसे पहले कौन से अंग बंद होते हैं?

ह्रदय गति धीरे धीरे धीमी होती जाती है, और फिर रुक जाती है।

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