भारत में अतिक्रमण की समस्या नासूर बन चुकी है। अब हालत ये हो चुकी है की छोटे शहर या कस्बों में भी ट्रैफिक जाम और झगडे आम हो चुके है वही ये समस्या बड़े शहरो में राक्षस बन चुकी है कई स्थानों पर हर समय जाम के हालत बने रहते हैं। फुटपाथ तक खाली नहीं बचे हैं, इन पर भी अतिक्रमणकारियों का कब्जा है। कई बार तो यह अतिक्रमण सड़क दुर्घटनाओं का कारण तक बन जाता है। गौर करें तो अतिक्रमण की समस्या ही जाम की जड़ है।
रोड हो या फिर बाजार, हर जगह अतिक्रमण की समस्या है। दुकानदार सामान को दुकान के कई फुट बाहर तक लगा लेते हैं। इसके बाद जब ग्राहक दुकान पर खड़ा होता है, वह भी स्थान घेरता है। मार्ग के दोनों ओर अतिक्रमण के चलते सड़क काफी संकरी हो जाती है। ऐसे में राहगीरों एवं वाहनों के निकलने को स्थान नहीं मिलता और जाम के हालात बन जाते हैं। रोड पर ज्यादातर बाजार फुटपाथ पर ही लगता है। ऐसे में यहां राहगीरों को चलने के लिए भी रास्ता नहीं मिल पाता। कई बार अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाए गए। अभियान के दौरान तो अतिक्रमण हट जाता है लेकिन अभियान थमते ही फिर से फुटपाथ पर अतिक्रमणकारियों का कब्जा हो जाता है।
अतिक्रमण का कोई धर्म नहीं होता…
फिर वो चाहे किसी धार्मिक आस्था से जुड़ा हो या अधार्मिक यानि लालच की आस्था से… शहर में ऐसे हजारों अवैध कब्जों और अतिक्रमण से पटे पड़े है. हैरानी की बात यह है कि जिम्मेदार अफसर आँख बंद करके बैठे ही नहीं बल्कि दुकानदारों से रोजाना मुनाफा वसूली होती है. आप चाहे वोट किसी भी सरकार को दे ले लेकिन ये व्यवस्था ऐसी की ऐसी ही रहती है.
अवैध कब्जेदारों और एंटी-एनक्रोचमेंट दस्ते के बीच ‘सेटिंग और गेटिंग’ इतनी तगड़ी होती है कि इनके खिलाफ होने वाली कार्यवाही दिखावा मात्र ही होती है. जहां एंटी-एनक्रोचमेंट ड्राइव चलाई जाती है. चंद घंटों बाद ही वहां दोबारा अतिक्रमण पहले की तरह सजा दिया जाता है. इस ‘भयमुक्त’ अभियान की वजह से ‘अवैध कब्जेदारी’ और अतिक्रमण की संख्या में धड़ाधड़ इजाफा हो रहा है.
रही-सही कसर सब्जी और फलों का ठेला लगाने वालों ने पूरी कर दी है. कुछ दिनों पहले गवर्नमेंट ने भी फेरी नीति को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिये थे. जिससे सब्जी और फलों का ठेला लगाने वालों को एक जगह शिफ्ट किया जाए और राहगीरों, वाहन चालकों को इनकी वजह से लगने वाले जाम में न फंसना पड़े. मगर, ना तो फेरी नीति लागू की गई, ना ही किसी अफसर को ही वहां रहने वाले लोगों की प्रॉब्लम पूछने का समय है.
चलिए समस्याए तो बहुत है अतिक्रमण से पर जरुरी बात यह है की उसका समाधान कैसे हो सकता है.
आज कल शाम को फुटपाथ पर कब्जे की वजह से चलना दूभर हो जाता है. सडक़ पर ठेले वाले खड़े रहते हैं और बाकी सडक़ पर गाडिय़ों की पार्किंग. जो टहलने के फायदे कम और नुक्सान ज्यादा देती है. लोग वोट देते है क़र्ज़माफ़ी, आरक्षण, विजली और पानी आदि के लिए पर वो दिन दूर दिन नहीं जब ये समस्या भी विकराल रूप धारण कर चुकी होगी।
ये कैसे संभव है :
बाजारों का मुख्य सड़क पर होना सबसे बड़ी समस्या है. नगरपालिका को चाहिए की इसकी व्यवस्था मुख्य मार्ग से हटकर करे.
मुख्य बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन आदि पर ठेले वाले बिलकुल नहीं होने चाहिए. इसके लिए बस स्टैंड या रेलवे स्टैंड पर अलग से छोटी सी मार्किट होनी चाहिए. 5-10 दुकानों के साथ. जो वहाँ की छोटी मोटी जरुरत को पूरा करे जैसे पानी, चाय या नाश्ता, जूस और मेडिकल।
बैटरी रिक्शा या साधारण रिक्शा का शहर के अंदर प्रवेश नहीं होना चाहिए, शहर के अंदर केवल सिटी बस चलना चाहिए. जो निर्धारित बस स्टैंड पर ही रुके।
बाजारों को केटेगरी के रूप में बाँट देना चाहिए जैसे –
- सब्जी बाजार अलग (सब्जी मंडी)
- कार, ट्रक, और दुपहिया वाहन की शौ रूम, सर्विस और रिपेयर करने वाली मार्किट अलग.
- इलेक्ट्रॉनिक्स मार्किट अलग जगह
- कपड़ो के लिए फैशन मार्किट अलग जगह.
- बुक्स (कॉपी किताबो )की मार्किट अलग – पुस्तक बाजार अलग
- अनाज या किसान मंडी अलग
और इन सभी मार्किट में प्रशासन की तरफ से अलग से पार्किंग की व्यवस्था होनी चाहिए ताकि लोग पैदल चल कर सामान ख़रीदे। गाडी पर बैठकर नहीं.
ये सारी मार्किट शहर के अलग अलग कोने पर होनी चाहिए जिनकी कनेक्टविटी सिटी बस के द्वारा होनी चाहिए. इसका सबसे बड़ा फायदा व्यापरियों को होगा क्युकी उन्हें पता होगा की ये ग्राहक सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स खरीदने आया है सब्जी नहीं।
और इस व्यवस्था के वाद किसी भी मार्किट में कोई जाम नहीं रहेगा, क्युकी इलेक्ट्रॉनिक्स मार्किट में सब्जी वाला ठेला भी नहीं दिखयी देगा क्युकी वहां उसके ग्राहक नहीं होंगे। इस तरह की व्यवस्था हर नगर, कस्वा में बनानी बहुत जरुरी है नहीं तो सब अपने ही जाल में फसे के फसे रह जायेंगे। और आने वाली पीढीयाँ सिर्फ आपको कोसेगी की पैदा क्यों किया। अतिक्रमण का दमन सिर्फ व्यवस्था बनाकर किया जा सकता है. क्युकी अतिक्रमण कोई एक नहीं करता बल्कि जिसे मौका मिलता है वही करता है.
अगर आपके यहाँ किसी सरकारी जमीन पर किसी नेता, गुंडा का कब्ज़ा या अतिक्रमण है तो इस प्रकार का लेटर बनाकर सूचना के अधिकार के तहत उस सम्बंधित विभाग को भेज सकते है और जानकारी ले सकते है।
ये आवेदन करने का प्रकार है केवल।
सेवा में,
लोक सूचना अधिकारी (विभाग का नाम) (विभाग का पता)
विषय: सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत आवेदन
स्थान की जानकारी – 1. 2.
महोदय, निम्नलिखित निर्माणों में सरकारी भूमि का अतिक्रमण किया गया है, कृपया इस संबंध में निम्नलिखित सूचनाएं उपलब्ध कराएं:-
इन मामलों में से प्रत्येक में अतिक्रमित सरकारी भूमि का क्षेत्रफल बताएं. ये अतिक्रमण किस प्रकार के हैं, विवरण दें?
क्या इन अतिक्रमणों के बारे में विभाग को पहले से पता है, यदि हां, तो निम्नलिखित जानदारी दें:-
क. पहली बार कब सूचना मिली? ख. अभी तक अतिक्रमण को हटाने के लिए क्या कार्रवाई की गई है? ग. यदि कोई कार्रवाई नहीं की गई है, तो क्यों? घ. इन अतिक्रमणों को हटाने से संबंधित सभी फाइलों एवं दस्तावेजोंका मैं निरीक्षण करना चाहता हूं. कृपया मुझे दिन, समय एवंस्थान के बारे में सूचित करें, जब मैं निरीक्षण के लिए आ सकूं. च. उन सभी अधिकारियों के नाम, पद एवं संपर्क का पूरा पता बताएं, जो इन अतिक्रमणों को हटाने के लिए जिम्मेदार हैं. च. क्या उक्त अधिकारी कानूनी प्रावधानों के अनुसार कार्रवाई न करने के कारण भ्रष्टाचार निवारण कानून की धारा 13 (घ) एवं भारतीय दंड संहिता की धारा 217 के उल्लंघन के दोषी हैं? छ. उक्त अधिकारियों के खिलाफ कब तक कार्रवाई होगी? ज. संबंधित अतिक्रमण कब तक हटा दिए जाएंगे? आवेदन शुल्क के रूप में 10 रुपये अलग से जमा कर रहा/ रही हूं.
या
बीपीएल कार्ड धारक हूं, इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं. मेरा बीपीएल कार्ड नं…………..है. यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/ कार्यालय से संबंधित न हो, तो सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन संबंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों की समयावधि के अंतर्गत हस्तांतरित करें. साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बताएं.
भवदीय नाम: पता: फोन नं: संलग्नक:
(यदि कुछ हो) |
Note – दी गयी जानकारी सिर्फ जानकारी के लिए है। किसी क़ानूनी उपयोग या दुरपयोग में प्रभावी या इस्तेमाल के लिए नहीं है।