ऊर्जा कार्य करने, परिवर्तन करने या प्रभाव उत्पन्न करने की क्षमता या क्षमता है। यह विभिन्न रूप (Conservation of Energy) ले सकती है, जैसे –
गतिज ऊर्जा-
गति की ऊर्जा, किसी वस्तु की गति से जुड़ी होती है।
संभावित ऊर्जा –
संग्रहीत ऊर्जा, जिसे गतिज ऊर्जा (जैसे, गुरुत्वाकर्षण, रासायनिक या लोचदार ऊर्जा) में परिवर्तित किया जा सकता है।
ऊष्मीय ऊर्जा –
ऊष्मा की ऊर्जा, किसी प्रणाली के तापमान से जुड़ी होती है।
विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा –
ऊर्जा के ऐसे रूप जिनमें प्रकाश, विकिरण और अन्य विद्युत चुम्बकीय तरंगें शामिल हैं।
रासायनिक ऊर्जा –
रासायनिक प्रतिक्रियाओं के दौरान जारी परमाणुओं और अणुओं के बंधनों में संग्रहीत ऊर्जा।
परमाणु ऊर्जा –
परमाणु के नाभिक में संग्रहीत ऊर्जा, परमाणु प्रतिक्रियाओं के माध्यम से जारी होती है।
ऊर्जा के संरक्षण का नियम –
ऊर्जा के संरक्षण का नियम बताता है कि ऊर्जा को बनाया या नष्ट नहीं किया जा सकता है, केवल एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।
दूसरे शब्दों में, एक पृथक प्रणाली की कुल ऊर्जा स्थिर रहती है, लेकिन उस ऊर्जा का रूप और स्थान बदल सकता है।
मॉडर्न विज्ञान Vs सनातन विज्ञान –
इस मामले में मॉडर्न विज्ञान, सनातन विज्ञान से कई 100 साल पीछे है, मॉडर्न विज्ञान आज भी नकारात्मक ऊर्जा और सकारात्मक ऊर्जा को काल्पनिक मानता है। मॉडर्न विज्ञान को जिसका ज्ञान नहीं होता उसे वह काल्पनिक बताने में देरी नहीं करता है।
क्या आधुनिक विज्ञान इस मामले में झूठा है? –
नहीं, ऐसा नहीं है कि इसे मॉडर्न विज्ञान ने खोजने की कोशिश नहीं की है, लेकिन पूरी तरह से सफल न होने की स्थिति में उन्होंने इसे काल्पनिक कहना शुरू कर दिया है।
इसे भौतिकी के विभिन्न क्षेत्रों में खोजा गया है, जिसमें शामिल हैं –
Conservation of Energy –
क्वांटम यांत्रिकी –
नकारात्मक ऊर्जा कुछ क्वांटम प्रणालियों में दिखाई दे सकती है, जैसे कि डिराक सागर या क्वांटम क्षेत्र सिद्धांत के संदर्भ में।
सामान्य सापेक्षता –
आइंस्टीन के क्षेत्र समीकरणों के कुछ समाधानों में नकारात्मक ऊर्जा घनत्व हो सकता है, जैसे कि विदेशी पदार्थ की उपस्थिति में।
ब्रह्मांड विज्ञान –
नकारात्मक ऊर्जा को ब्रह्मांड के विस्तार के देखे गए त्वरण के लिए एक संभावित स्पष्टीकरण के रूप में प्रस्तावित किया गया है।
इससे स्पष्ट होता है कि सनातन धर्म ने उस विषय या वस्तु को भी संदर्भित किया है, जिसे देखा नहीं जा सकता।
सनातन धर्म ने पहले से ही सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के बारे में पता लगा लिया है। शुध्द ऊर्जा का मतलब आत्मा है। यह कोई दूसरी नहीं है, यह एक है, लेकिन मॉडर्न वैज्ञानिक इसके बारे में नहीं जानते या जानकर भी अनदेखा करते है।
Conservation of Energy –
न जायते म्रियते वा कदाचिन, नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो, न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
इसका अर्थ है कि आत्मा का न जन्म होता है, न मृत्यु। यह नित्य, अजर, अमर और शाश्वत है। शरीर के नष्ट होने पर आत्मा का विनाश नहीं होता।
गीता में बताया गया है कि मृत्यु केवल शरीर के लिए है, आत्मा का नाश नहीं होता। आत्मा का अस्तित्व सदा बना रहता है और यह नए शरीर को धारण करती है। लेकिन मृत्यु के बाद आत्मा को कैसा और क्या शरीर मिलेगा ये उसके सकारात्मक कार्य या नकारात्मक कार्य करने के तरीके पर निर्भर करती है।
वासांसि जीर्णानि यथा विहाय, नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा, न्यन्यानि संयाति नवानि देही।।
इसका अर्थ है कि जैसे मनुष्य पुराने कपड़े त्यागकर नए कपड़े पहनता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर धारण करती है।
गीता में यह स्पष्ट किया गया है कि हमारे कर्म (अच्छे या बुरे) मृत्यु के बाद आत्मा के अगले जीवन को निर्धारित करते हैं। (Positive Energy) अच्छे कर्म करने वाले उच्च लोकों (स्वर्ग या मोक्ष) की ओर ले जाते हैं, जबकि (Negative Energy) बुरे कर्म करने वाले निम्न लोकों (अधोगति या दु:खमय जीवन) की ओर ले जाते हैं।
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