जैसा की आप जानते है की देववृक्ष तुलसी का पेड़ भगवान विष्णु को प्रिय है और बेल का पेड़ भगवान शिव को. तो वही आंवला का पेड़ ऐसा जिसमे तुलसी और बेल के पेड़ के गुण पाए जाते है। तो जब लक्ष्मी जी ने ऐसा सोचकर आंवला वृक्ष के नीचे पूजा की तो दोनों देव वहाँ प्रकट हो गए।
देववृक्ष तुलसी का पौधा –
तुलसी के पौधे को एक तरह से लक्ष्मी का रूप माना गया है। तुलसी का पौधा घर में लगाने से पहले आपको पता होना चाहिए की तुलसी का पौधा कब और कहाँ लगाना चाहिए या किस दिन और किस दिशा में लगाना चाहिए। कहते है की जिस घर में तुलसी की पूजा अर्चना होती है उस घर पर भगवान श्री विष्णु की सदैव कृपा दृष्टि बनी रहती है । तुलसी को भगवान विष्णु की पत्नी माना जाता है, इसलिए इसे “हरिप्रिया” भी कहा जाता है। और दोनों की प्रसन्नता के लिए तुलसी विवाह का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
तुलसी का महत्व / तुलसी के उपयोग –
आपके घर में यदि किसी भी तरह की निगेटिव एनर्जी मौजूद है तो यह पौधा उसे नष्ट करने की ताकत रखता है। हां, ध्यान रखें कि तुलसी का पौधा घर के दक्षिणी भाग में नहीं लगाना चाहिए। लेकिन अगर तुलसी का पौधा सूख जाए तो क्या करना चाहिए, इसका सीधा सीधा इशारा है की आपके घर में नकारात्क शक्ति का प्रभाव बहुत ज्यादा हो रहा है। आप सत्य नारायण की कथा और दान पुण्य करके इन प्रभावों को कम कर सकते है।
आंवले का पेड़ –
आंवले का पेड़ आपके कष्टों का निवारण करता है। आंवले के पौधे की पूजा करने से मनौती पूरी होती हैं। इसकी नित्य पूजा-अर्चना करने से भी समस्त पापों का शमन हो जाता है। जब पूरी सृष्टि जलमग्न थी और तब ब्रम्हा जी कमल पुष्प में बैठकर परब्रम्ह की तपस्या कर रहे थे। वह अपनी कठिन तपस्या में लीन थे, तपस्या के करते-करते ब्रम्हा जी की आंखों से प्रभु के प्रेम में अनुराग के आंसू टपकने लगे थे। ब्रम्हा जी के इन्हीं आंसूओं से आंवला का पेड़ उत्पन्न हुआ, जिससे इस चमत्कारी औषधीय फल की प्राप्ति हुई। इस तरह आंवला वृक्ष सृष्टि में आया ।
कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन अक्षय नवमी का पर्व मनाया जाता है। हालांकि यह भारत भर में मनाया जाता है, लेकिन बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में अधिक प्रचलित है। इस दिन पश्चिम बंगाल में देवी जगद्धात्री की पूजा की जाती है। अक्षय का अर्थ होता है-जिस चीज का नाश न हो।
पुराणों के अनुसार, आंवला और तुलसी के वृक्ष में विष्णु भगवान का वास होता है, इसलिए इनका कभी नाश नहीं होता है। आंवला ब्रह्मा का वृक्ष भी कहलाता है। मान्यता है कि ब्रह्मा ने इस वृक्ष को वरदान दिया था कि जो भी इस वृक्ष के नीचे भोजन करेगा, दीर्घ आयु वाला होगा। भारत के प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथ चरक संहिता में भी आंवले का उल्लेख है। आंवला खाने से शरीर निरोगी रहता है और रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।
महिलाएं इस दिन जल, फूल और दूध से आंवले के वृक्ष की पूजा करती हैं। कच्चे सूत को इसके तने में लपेटती हैं। अंत में घी और कर्पूर से वृक्ष की आरती कर परिक्रमा करती हैं। संध्या समय वे इसी पेड़ के पास भोजन बनाती हैं और परिवार के सदस्यों और अन्य लोगों को खिलाती हैं।
पृथ्वी पर 7 मुख्य देववृक्ष इस प्रकार है –
- तुलसी
- आँवला
- केला
- पीपल
- शमी
- बेल (बेलपत्र)
- पान (बेल)