आज हम जिस महिला के बारे में बताने जा रहे है उनका नाम आनंदीबाई जोशी है| यह उस महिला का नाम है जिसने पहली बार डॉक्टर की डिग्री प्राप्त करके अपना नाम इतिहास में अमर कर लिया है| आनंदीबाई ने यह गौरव जब हासिल किया तब महिलाये घर से बाहर नहीं निकलती थी ,और न ही उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था| उस समय भारत अंग्रेजों का गुलाम था ,समाज के लोग बहुत रुढ़िवादी धारणा के विचार रखते थे| लेकिन इन सब की परवाह न करते हुए आनंदीबाई ने वो करके दिखाया ,जो किसी भी महिला के लिए उस समय पर करना बहुत मुश्किल का काम था| आनंदीबाई ने यह डिग्री विदेश में पढ़ाई करके हासिल की थी जिस कारण वे विदेश जाकर पढाई करने वाली ,हमारे देश की प्रथम महिला बन गई थी| तो आज हम आपको इस लेख के माध्यम से आनंदीबाई जोशी के जीवन से परिचय करने जा रहे है|
Who was the first woman doctor of India?
Anandi Gopal Joshi, considered by some as India’s first female doctor, to have received medical degrees in 1886. was one of the earliest female physicians in India. Anandi Gopal Joshi, who also goes by the names ‘Anandibai Gopalrao Joshi’ and ‘Anandibai Joshi’, celebrates her 153rd birthday today.Mar 31, 2018
पहिली डॉक्टर आनंदीबाई जोशी –
आनंदीबाई का जन्म 31 मार्च 1865 में पुणे (महाराष्ट्र) में एक मराठी परिवार में हुआ था| उनका परिवार पुराने कल्याण शहर में पारनाका परिसर में रहता था| उनके माता-पिता ने उनका नाम यमुना रखा था| लेकिन शादी के बाद उनका यह नाम बदलकर आनंदीबाई रख दिया गया था| आनंदीबाई की शादी 9 साल की उम्र में गोपालराव जोशी से हुई थी ,जो कि उम्र में उनसे 20 साल बड़े थे| आनंदीबाई ने 14 साल की उम्र में एक बेटे को जन्म दिया ,लेकिन वह 10 दिन तक ही जीवित रहा और उसकी मौत हो गई ,क्योंकि उस समय पर अच्छी चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं थी| जिस कारण उनके बेटे का इलाज नहीं हो सका| लेकिन इस बात का प्रभाव आनंदीबाई के मन पर बहुत गहरा पड़ा, और उन्होंने डॉक्टर बनने का फैसला किया| क्योंकि वे नहीं चाहती थी कि जिस प्रकार उनके बेटे की मौत हुई ,उस प्रकार किसी ओर को भी अपना बेटा खोना पड़े|
जब आनंदीबाई के पति गोपालराव को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी पत्नी के इस फैसले का सम्मान किया| उनकी इस पढाई के लिए गोपालराव ने अमेरिका के रॉयल विल्डर कॉलेज को खत लिखकर अपनी पत्नी की पढ़ाई के लिए आवेदन किया लेकिन विल्डर कॉलेज ने उनके सामने एक शर्त रख दी की उनकी पत्नी को इसाई धर्म अपनाना पड़ेगा, लेकिन उन्होने इसे अस्वीकार किया| लेकिन जब इस बात का पता न्यू जर्सी के निवासी ठोडीसिया कारपेंटर नामक व्यक्ति को चला, तो उन्होंने गोपालराव को पत्र लिखकर कहा कि वे उनकी पत्नी को अमेरिका के मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिलाने में सहायता करेंगे|
1883 में आनंदीबाई ने अमेरिका के मेडिकल कॉलेज ऑफ़ पेनसिलवेनिया में दाखिला ले लिया| उन्होंने बड़ी निष्ठा और आत्मविश्वास के साथ अपनी डॉक्टर की पढाई पूरी की और 11 मार्च 1886 को उन्होंने डॉक्टर की डिग्री ( MD की उपाधि ) प्राप्त कर ली ,और इसके साथ ही वे भारत की प्रथम महिला डॉक्टर बन गई थी| उनकी इस कामयाबी पर इंग्लैण्ड की रानी विक्टोरिया ने उन्हें बधाई दी|
जब प्रथम महिला डॉक्टर आनंदीबाई जोशी डॉक्टर की डिग्री लेकर भारत लौटी तो उनके पति के साथ-साथ सभी लोगों ने उनका अभिवादन किया ,और सभी को उन पर बहुत गर्व हुआ| उन्होनें कोलाहपुर के अल्बर्ट एडवर्ड हॉस्पिटल में महिला विभाग का काम संभाला , यह भारत में महिलाओं के लिए पहला मौका था जब उनकें इलाज़ के लिए कोई महिला डॉक्टर उपलब्ध थी| उन्होंने पूरी निष्ठा के साथ सभी मरीजों का इलाज किया|
लेकिन वे बहुत अधिक समय तक लोगों का इलाज नहीं कर पायी क्योंकि डॉक्टर बनने के एक साल बाद ही 26 फरवरी 1887 को आनंदीबाई जोशी का टीबी की बीमारी के कारण निधन हो गया| क्योंकि आनंदीबाई जब अमेरिका गई थी तब वहां का तापमान और खाना-पीना वे सहन नहीं कर सकी इससे उनका स्वास्थ्य दिन प्रति दिन खराब होता चला गया जिस कारण उन्हें टीबी (क्षयरोग) हो गई| लेकिन फिर भी उन्होंने अपनी बीमारी की परवाह न करते हुए अपनी डॉक्टर बनने की पढाई पूरी की| जब वे डॉक्टर की डिग्री लेकर भारत वापस लौटी तो वे टीबी की बीमारी से पूरी तरह से ग्रसित हो चुकी थी| जिस कारण उनका स्वस्थ दिन प्रतिदिन खराब होता ही चला गया और अंत में उनकी मौत हो गई| जब आनंदीबाई की मृत्यु हुई तो वे केवल 22 साल की थी| इतनी छोटी सी उम्र में ही आनंदीबाई जोशी ने वो करके दिखाया जिसे लोग पूरी उम्र में भी हासिल नहीं कर पाते है|
आनंदीबाई वह भारतीय महिला है जिन्होंने हर प्रकार की मुश्किलों का सामना किया और अंत में अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ये बताया कि एक औरत चाहे तो वह कुछ भी कर सकती है|
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