भिंड के वनखंडेश्वर मंदिर को भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक माना जाता है, क्युकी इस शिव मंदिर का निर्माण बर्ष 1175 ई. में राजा प्रथ्वीराज चौहान द्वारा कराया गया था । भारत के प्राचीन मंदिरों में भिंड जिले में वनखंडेश्वर मंदिर है,

विशेषता –

  • यहाँ दो अखंड ज्योति प्रज्जवलित है, जिसे ‘अखण्ड ज्योति’ या ‘शाश्वत लौ’ कहा जाता है, ऐसा माना जाता है कि यह निरंतर प्रज्वलित हो रही है।
  • शिवालय में जाने वाला कोई भी भक्त उनकी झूठी कसम नहीं खा सकता जो भी मंदिर में झूठी कसम खाता है, उसके साथ कुछ ना कुछ अनहोनी घटित होती है।
  • सिद्दी, भक्ति और सुरक्षा के लिए अर्थात आध्यात्मिक और भौतिक वृध्दि के लिए

विशेष दिन व् त्यौहार –

हर सोमवार, मंदिर में ‘महाआरती’ होती है और महाशिवरात्रि उत्सव के दौरान हर साल यहां एक बड़ा मेला आयोजित किया जाता है। दूर-दूर से भक्त यहां सावन माह में कांवर / कावड़ लेकर शिव जी की सेवा में जल अभिषेक करते है।

वनखंडेश्वर महादेव का एक स्वरूप महाशिवरात्रि पर लाल बत्ती की पालकी में सवार होकर 1 दर्जन से अधिक बैंड-बाजा, डीजे के साथ पूरे शहर का भ्रमण करते हैं और इस शिव बरात में पूरा शहर बाराती बनकर बाबा के भक्ति में सराबोर नजर आता है.

वनखंडेश्वर महादेव के अद्भुत, अलौकिक दर्शन लाभ भक्त दशहरा पर भी करते हैं. इस दिन सोने-चांदी, हीरे-जवारात से वनखंडेश्वर महादेव का विशेष श्रृंगार किया जाता है,

मंदिर से जुड़ी कहानी –

पृथ्वीराज के समय भिंड शहर, चम्बल नदी के सबसे बड़े और भयानक जंगल के रूप में था। राजा पृथ्वीराज चौहान 1175 में महोबा के चंदेल राजा से युद्ध करने अपने हाथी, घोड़ों के साथ भिंड से गुजरे थे। जब पृथ्वीराज सिंह चौहान महोबा के चंदेली राजाओं से युद्ध करने के लिए जा रहे थे तब रास्ते में वह भिंड क्षेत्र में रूके थे. रात्रि में विश्राम के दौरान उन्हें स्वप्न आया कि जिस जगह वह विश्राम कर रहे हैं उस जगह भोलेनाथ का शिवलिंग है, जिसे स्थापित किया जाए तो निश्चित ही आपकी विजय पताका लहराएगी.

उन्होंने खुदाई की तो जमीन से शिवलिंग निकला। राजा पृथ्वीराज सिंह चौहान भोलेनाथ के अनन्य भक्त थे, उसके बाद ही पृथ्वीराज चौहान ने इस जगह मंदिर बनवाकर इस शिवलिंग की स्थापना करा दी। जिस क्षेत्र में भोलेनाथ को स्थापित किया गया वहां घनघोर वन खंड था इसी कारण भोलेनाथ के इस शिवलिंग का नाम वनखंडेश्वर महादेव पड़ा. कहते है कि आस पास बहुत सारे शिवलिंग थे, जिनका निर्माण शिव जी के भूतगणों ने किया था।

शिवलिंग की स्थापना के बाद यहां उन्होंने अखंड ज्योत जलाई थी। जो अखंड ज्योत आज तक वनखंडेश्वर महादेव मंदिर में प्रज्वलित है। राजा पृथ्वीराज सिंह चौहान ने 11वीं सदी में इस शिवलिंग की स्थापना करवाई गई थी. उसी समय पूजा करने के दौरान घी के दो दीपक प्रज्वलित किए, जो हजारों साल बीत जाने के बाद आज भी प्रज्वलित है। यह दो दीपक, भोलेनाथ के दोनों नेत्रों के समान माने जाते हैं।

उसके बाद चंदेली राजाओं पर विजय प्राप्त करने के बाद वे वापस लौट कर आए, और भव्यता से शिवलिंग को विधिविधान से स्थापित किया.

सिद्दी की प्राप्ति –

विशेष पूजा विधि, या पाठ के द्वारा, यहाँ उनके भक्तगण सिद्दी की प्राप्ति भी करते है जैसे कि –

शिव चालीसा –

जिसमे किसी का अहित न हो उसके लिए शिव चालीसा का 108 बार पाठ के पश्चात शहद की मीठी खीर चढ़ाते है।

कारण – भौतिक मनोकामना के लिए, ज्ञान दृष्टि के लिए

अमोघ शिव कवच –

अमोघ शिव कवच का 108 बार पाठ के पश्चात गुड़ और दही मिलाकर भोग लगाते है।

कारण – निरपराध होने के बाद भी शत्रु भय या न्याय के लिए। घर नकारात्मक शक्तियों से सुरक्षित रहे। किसी का किया कराया काटने के लिए।

रावण रचित शिव तांडव स्तोत्र –

11 सोमवार या श्रावण में तांडव स्तोत्र का पाठ करने पर शिव जी अपने गणो के द्वारा आपको अपने होने का अनुभव प्राप्त करवाते है, और भक्ति में आगे बढ़ने का निर्देश देते है।
कारण – अभीष्ट वर की प्राप्ति के लिए, जिसमे किसी का अहित न हो।

श्री शिव सहस्रनाम स्तोत्र –

हर सोमवार को या प्रतिदिन शिव सहस्त्रनाम को पढ़कर, उन नामो के बारे में सोचने पर शिव जी की अखंड भक्ति प्राप्त होती है। ऐसा करने पर ज्ञान दृष्टि जाग्रत होने लगती है। ताकि आप भक्ति में आगे बढ़ सके।
कारण – भगवान् शिव की अखंड भक्ति की प्राप्ति के लिए।

शिव अष्टकम स्तोत्र –

हर सोमवार को या प्रतिदिन शिव अष्टकम स्तोत्र का पाठ करने के पश्चात जल चढ़ाये। भौतिक और आध्यत्मिक जीवन में वृद्धि होती है। टोन टोटके से रक्षा होती है।

शिव महापुराण का पाठ –

वनखंडेश्वर मंदिर का ध्यान करके शिव महापुराण का नित्य पढ़ते रहने से, शिव जी के गण स्वयं साथ रहते है। शिव महापुराण का पारण के समय गाय या नंदी को चारा खिलाये, दान दे,

विशेष सेवा –

पाठ के बाद पूजा-अर्चना के दौरान बेलपत्र, फूल माला, भंग, धतूरा के साथ-साथ गंगाजल से अभिषेक करने से भक्तों मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और भौतिक जीवन में अपार सुख, शांति समृद्धि रहती है.

अगर कुछ भी अर्पित करने में असमर्थ है, दो आँखे बंद करके मानसिक पूजा करे, और जो मनचाहे वो प्रेम से अर्पित करे।

भूत गणों ने बनाया श्री वनखंडेश्वर मंदिर? –

यह बात तो है पृथ्वीराज सिंह चौहान के समय के बाद से, लेकिन उसके पहले क्या था। तो प्राचीन मान्यताओं और लोगो की कही-सुनी के अनुसार उससे पहले यहाँ इस वन क्षेत्र में 108 शिव लिंगो की इस्थापना शिव जी के भूतगणों ने की थी। लेकिन कार्य सम्पूर्ण हो पता उससे पहले सुबह हो गयी। और वे गायब हो गए। काफी दिनों तक निर्जन वन में सब ऐसा ही रहा, फिर उस क्षेत्र में पृथ्वीराज के पहुंचने पर उन्हें स्वप्न आया। आज भी उस क्षेत्र में आस पास ही बहुत सारे शिवलिंग देखे जा सकते है, और आज छोटे छोटे मंदिर बने हुए है।

नोट – पाठ के बारे में विशेष जानकारी स्वयं के भाव से है। अगर करना चाहते है तो किसी सिद्द या किसी परंपरा से पढ़े हुए गुरु की शरण में जाए। भूतगणों वाली बात लोगो की कही-सुनी के अनुसार है, हमारे पास कोई प्रमाण नहीं है, अपने विवेक से काम ले।

ऐसी जानकारियों या Hindi me Advice के लिए Hindi Hai वेबसाइट पर समय समय पर आते रहे।

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कैसे पहुंचें –

हवाई मार्ग द्वारा –

श्री महादेव के दर्शन के लिए निकटतम हवाई अड्डा ग्वालियर है, जो भिंड से लगभग 70 किमी दूर है|

ट्रेन द्वारा –

नजदीकी रेलवे स्टेशन भिंड रेलवे स्टेशन है, जहाँ आप इटावा और ग्वालियर के रास्ते पहुंच सकते है।

सड़क के द्वारा –

वनखंडेश्वर मंदिर भिंड जिले में ही स्थित है। श्रद्धालु भिंड बस स्टैंड तक पहुँच सकते हैं बस स्टैंड से वनखंडेश्वर मंदिर तक जाने के लिये तिपहिया वाहन आसानी से मामूली किराए पर उपलब्ध हैं।

एक विकराल समस्या –

वनखंडेश्वर महादेव मंदिर को विधर्मियो ने घेर कर वहां पर अतिक्रमण कर लिया है, वे शिवभक्तो के मार्ग में बिना लाइसेंस के बहुत सी दुकानें खोल कर, उस पवित्र क्षेत्र पर अतिक्रमण बढ़ाते जा रहे है, सारा मार्ग दूषित है, जर्जर अवस्था में रहता है, मार्ग में मांस, हड्डी, इत्यादि के  अवशेष पड़े रहते है। लेकिन हिन्दू चुपचाप सर झुककर, नज़रे बचाकर सरकार को कोसते हुए निकल जाते है। मिलकर कार्यवाही करने से कतराते है।

आप भारत के और भी ऐसी इतिहास देख सकते है जो लुप्त होने की कगार पर है

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