जाने kalpavriksha या Parijaat ka Ped kaha par hai और ये kalpavriksha kya है। जानिये पौराणिक कल्पवृक्ष के बारे में हिंदी में। आज हम आपको एक ऐसे वृक्ष के बारे में बताने जा रहे है, जिसकी व्याख्या वेद व पुराणों में भी की गई है| उस वृक्ष का नाम है पारिजात वृक्ष या कल्पवृक्ष (Kalpavriksha) |

पारिजात वृक्ष या कल्पवृक्ष (Kalpavriksha kya hai?) –

इस वृक्ष की उत्त्पति समुन्द्रमंथन् के दौरान हुई थी| यह वृक्ष बहुत ही अद्भुत व दिव्य था| इसलिए इसे देवराज इंद्र स्वर्ग ले गए थे| इसके पुष्प बहुत ही मनमोहक सुगंध वाले थे| जो भी इस वृक्ष के नीचे बैठ जाए तो उसकी सारी चिंता व थकान दूर हो जाती| स्वर्ग में इस वृक्ष को छूने का अधिकार केवल उर्वशी नामक अप्सरा को था| इसके अलावा कोई भी स्वर्गवासी इसे नही छू सकता था|

अब आप सोच रहे होंगे कि अगर यह दिव्य वृक्ष स्वर्ग में था तो यह धरती पर कैसे आया? तो आज हम इस लेख के माध्यम से आपको इस वृक्ष की स्वर्ग से धरती पर लाये जाने की वजह बतायेंगे और इसके साथ-साथ आपको इस बात की जानकारी भी देंगे कि यह वृक्ष कितने सारे औषधीय गुणों से परिपूर्ण है|

आयुर्वेद की दुनिया में इस वृक्ष को हरसिंगार के नाम से जानते है| इस वृक्ष के तने ,पत्तियों ,छाल ,बीज ,फूल और जड़ में अनेक रोगों को ठीक करने की क्षमता होती है| इसके अलावा यह वृक्ष हमें सकारात्मक उर्जा और मन की शांति भी प्रदान करता है|

पारिजात वृक्ष या कल्पवृक्ष Kalpavriksha धरती पर कैसे आया?

(kalpavriksha Dharti par kaha hai aur Kaise aaya?)

पारिजात वृक्ष या कल्पवृक्ष को धरती पर लाने की दो पौराणिक कथाएँ है| इसमें से एक हम आपको बता रहे है ,जिसका वर्णन हरिवंश पुराण में किया गया है| जो इस प्रकार है –

एक बार नारदजी भगवान श्रीकृष्ण से मिलाने के लिए प्रथ्वीलोक गए| नारदजी श्रीकृष्ण को भेट स्वरूप देने के लिए पारिजात के फूल भी अपने साथ ले गए| जब नारदजी ने श्रीकृष्ण को फूल दिए तो उन्होंने यह फूल अपनी पटरानी रुक्मणी को दे दिए| जिसे देखकर रुक्मणी बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने इस फूल को अपने बालों में लगा लिया|

लेकिन जब इस बात का पता श्रीकृष्ण की अन्य रानी सत्यभामा को चला तो वे बहुत क्रोधित हुई| उन्हें इस बात की ईर्ष्या हुई कि श्रीकृष्ण ने इतने अद्भुत फूल केवल रुक्मणी को दिए ,मुझे क्यों नहीं?

तब सत्यभामा ने प्रण लिया कि वे श्रीकृष्ण से पूरा का पूरा पारिजात का वृक्ष लेकर रहेंगी| वे श्रीकृष्ण को अपनी इच्छा बताती है और उसे पूरा करने को कहती है| सत्यभामा की इच्छा सुनकर भगवान श्रीकृष्ण उन्हें समझाते है कि अगर तुम्हे पारिजात के फूल चाहिए तो मैं अभी जाकर ले आता हूँ| लेकिन इसके लिए पूरा का पूरा वृक्ष लाने की क्या आवश्यकता है?

लेकिन सत्यभामा उनकी कोई भी बात नहीं सुनती है| तो श्रीकृष्ण उनके हठ के सामने हार मानकर पारिजात वृक्ष लेन के लिए जाते है| परतु देवराज इंद्र श्रीकृष्ण को वृक्ष देने से मना कर देते है| इस बात से श्रीकृष्ण को बहुत क्रोध आता है और वे स्वर्ग पर आक्रमण कर देते है| इस युद्ध में देवराज इंद्र को पराजित करके वे पारिजात वृक्ष को पृथ्वी पर ले आते है| इस प्रकार पारिजात वृक्ष स्वर्ग से प्रथ्वीलोक पर लाया जाता है|

कल्पवृक्ष Kalpavriksha कहाँ पाया जाता है? (Kalpavriksha Kaha hai?

पारिजात का वृक्ष वैसे तो पूरे भारत में पाया जाता है लेकिन सबसे अधिक यह मध्य भारत व हिमालय की निचली तराइयो में मिलता था,

  • बाराबंकी जिला मुख्यालय से 38 किलोमीटर कि दूरी पर किंटूर गाँव है। किंटूर गाँव में ही भारत का  पारिजात का पेड़ पाया जाता है।
  • और इलाहाबाद के संगम तट पर भी मौजूद है। जिसे हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बचाने की पहल की है।

पारिजात वृक्ष या कल्पवृक्ष Kalpavriksha के विभिन्न नाम –

परिजात ,प्राजक्ता ,हरसिंगार ,शेफालिका ,गुलजाफरी ,शेफाली ,कल्पवृक्ष ,शिउली ,पारिजातक ,हरशणगार ,मज्ज्पू ,कूरी ,नाईट जैसमिन ,पवलमल्लिकै ,पविझ्मल्ली आदि|

पारिजात वृक्ष या कल्पवृक्ष (Kalpavriksha) की विशेषताएं –

  • इस वृक्ष को छूने मात्र से ही थकान दूर हो जाती है|
  • इस वृक्ष की आयु लगभग 1000 से 5000 वर्ष तक मानी गई|
  • इसके फूल सफेद रंग के होते है|
  • सूखने के बाद इसके फूल सुनहरे रंग के हो जाते है|
  • इसकी ऊंचाई 25 से 45 फीट तक हो सकती है|
  • इसके फूलों की सुगंध मन को मोह लेने वाली होती है|
  • इसके फूल केवल रात्रि में ही खिलते है और सुबह मुरझा जाते है|
  • शास्त्रों में इसके फूलों को तोड़ना वर्जित माना गया है|
  • इसके फूल देवी लक्ष्मी पर चढ़ाये जाते है|
  • इस वृक्ष के फूल पेड़ से काफी दूर झड़ते है|
  • इसमें फूल बरसात के महीने में आना प्रारंभ हो जाते है|
  • शुष्क मौसम में इसके पत्ते झड जाते है|

पारिजात वृक्ष या कल्पवृक्ष (Kalpavriksha) के औषधीय गुण –

इस वृक्ष में निम्नलिखित औषधीय गुण पाए जाते है| जो हमें अनेक प्रकार के रोगों से बचाते है इसलिए इस वृक्ष के तना ,पत्ती ,फूल ,छाल ,बीज का उपयोग कई प्रकार की दवाईयों को बनाने के लिए किया जाता है|

  • अगर पेट में कीड़े हो तो इसके ताजे पत्तों के रस का शक्कर के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े मर जाते है|
  • शुगर के रोगी अगर इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर पिए तो उन्हें बहुत फायदा होता है|
  • इस वृक्ष की जड़ या पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से गठिया के रोगियों को राहत मिलती है|
  • इसके पत्तों को पीसकर लेप बनाए और उसे थोड़ा गर्म करके गुनगुना-गुनगुना जोड़ो के दर्द में लगाए तो आराम मिलता है|
  • अगर किसी को नाक-कान से खून बहने की समस्या है| तो वह इस वृक्ष की जड़ को रखकर चबाया करे तो उसकी यह समस्या दूर हो जाएगी|
  • इसकी जड़ो का चूर्ण बनाकर सेवन करने से पुराने से पुरानी खांसी चली जाती है|
  • इसके बीज का पेस्ट बनाकर सिर पर लगाने से रुसी व गंजेपन की समस्या दूर हो जाती है|
  • अगर किसी को बार-बार पेशाब जाने की समस्या है तो वह इस वृक्ष के पत्ते,जड़ व फूल का काढ़ा बनाकर सेवन करे| इससे आराम मिलेगा|
  • अगर किसी प्रकार का घाव हो जाये तो इसके बीज का लेप बनाकर लगाने से घाव ठीक हो जाता है|
  • इसके पत्तों का काढ़ा व लेप दाद ,घाव ,खुजली व अन्य त्वचा से संबंधित रोगों को ठीक करता है|
  • इसके पत्तों का काढ़ा बनाकर .उसमे अदरक और शहद मिलाकर सेवन करने से बुखार में राहत मिलती है| यह काढ़ा मलेरिया के बुखार में भी फायदेमंद है|

इन सब के अलावा यह बवासीर ,अस्ति भंग ,पाचनतंत्र ,तनाव ,आँखों व महिलाओं से सबंधित रोगों को भी दूर करता है|

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