(Sanatan Science) सनातन धर्म बताता है कि नक्षत्रों की संख्या 27 होती है, जो चंद्रमा की 27 दिनों की एक पूर्ण परिक्रमा के दौरान उसकी स्थिति को दर्शाते हैं। चंद्रमा के घटने और बढ़ने का नक्षत्रों से गहरा संबंध है, क्योंकि प्रतिदिन चंद्रमा अपने एक अलग नक्षत्र में रहते है, अर्थात प्रतिदिन अन्य-अन्य पत्नी के साथ रहते है।
चंद्रमा के घटने और बढ़ने को दो भागों में बांटा गया हैं –
चंद्रमा की बढ़ती अवस्था (शुक्ल पक्ष) –
इस दौरान चंद्रमा पूर्णिमा की ओर बढ़ता है, और प्रतिदिन एक नक्षत्र को छोड़कर दूसरे नक्षत्र में जाता है। जैसे कि अश्विनी, भरणी, रोहिणी, आदि। शुक्ल पक्ष सभी शुभ कार्यो के लिए माना जाता है।
चंद्रमा की घटने की अवस्था (कृष्ण पक्ष) –
इस दौरान चंद्रमा अमावस्या की ओर घटता है, और प्रतिदिन एक नक्षत्र को छोड़कर दूसरे नक्षत्र में जाता है।, जैसे कि पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवणा, आदि।
चंद्र कलाये –
चन्द्रमा हर रोज़ अलग नक्षत्र में रहता है, तो अलग रूप में रहता है, इस रूप को चन्द्रमा की कला कहते है। आप नक्षत्र चरण चार्ट या नक्षत्र चार्ट नीचे देख सकते है।
नक्षत्र कितने होते हैं?
यहाँ नक्षत्र लिस्ट दी गयी है –
Sr. No | Nakshtra English Name | Nakshtra Hindi Name |
1 | Ashvini/Aswini | अश्विनी |
2 | Bharani | भरणी |
3 | Krittika/Krithika | कृत्तिका |
4 | Rohini | रोहिणी |
5 | Mrigashirsha | मृगशीर्ष |
6 | Ardra | आर्द्रा |
7 | Punarvasu | पुनर्वसु |
8 | Pushya | पुष्य |
9 | Ashlesha | आश्ळेषा/आश्लेषा |
10 | Magha | मघा |
11 | Purva Phalguni | पूर्व फाल्गुनी |
12 | Uttara Phalguni | उत्तर फाल्गुनी |
13 | Hasta | हस्त |
14 | Chitra | चित्रा |
15 | Swati | स्वाति |
16 | Vishakha | विशाखा |
17 | Anuradha | अनुराधा |
18 | Jyeshtha | ज्येष्ठा |
19 | Mula | मूल |
20 | Purva Ashadha | पूर्वाषाढा |
21 | Uttara Ashadha | उत्तराषाढा |
22 | Shravana | श्रवण |
23 | Dhanishtha | श्रविष्ठा/धनिष्ठा |
24 | Shatabhisha | शतभिषक्/शततारका |
25 | Purva Bhadrapada | पूर्वभाद्रपदा/पूर्वप्रोष्ठपदा |
26 | Uttara Bhadrapada | उत्तरभाद्रपदा/उत्तरप्रोष्ठपदा |
27 | Revati | रेवती |
नक्षत्र क्या है?
आकाश में तारा-समूह को नक्षत्र कहते हैं। लेकिन ये सभी तारे चन्द्रमा के रास्ते में पड़ते है या चंद्र पथ में विध्यमान है। अर्थात चन्द्रमा हर दिन किसी न किसी नक्षत्र से मिलकर आगे बढ़ता है। चन्द्रमा और नक्षत्र का सम्बन्ध आपको नीचे दी गयी पौराणिक कहानी से मिलेगा।
शिव महापुराण की कहानी के अनुसार प्राचीन काल में राजा दक्ष ने अश्विनी समेत अपनी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से किया था | ये वही कन्याये है जिन्हें आज 27 नक्षत्र के नाम से जाना जाता है | 27 कन्याओं का पति बनके चंद्रमा बेहद प्रसन्न थे | कन्याएं भी चंद्रमा को वर के रूप में पाकर अति प्रसन्न थीं | लेकिन ये प्रसन्नता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी | क्योंकि कुछ दिनों के बाद चंद्रमा उनमें से एक रोहिणी पर ज्यादा मोहित हो गए | चन्द्रमा अपना सबसे ज्यादा समय सिर्फ रोहिणी को ही देते थे, जिससे की अन्य कन्याये दुखी रहने लगी |
ये बात जब राजा दक्ष को पता चली तो वो चंद्रमा को समझाने गए। चंद्रमा ने उनकी बातें सुनीं, लेकिन कुछ दिनों के बाद फिर रोहिणी पर उनकी आसक्ति और तेज हो गई | जब राजा दक्ष को ये बात फिर पता चली तो वो क्रोध में चंद्रमा के पास गए | उन्होंने कहा कि ‘मैं तुम्हें पहले भी समझा चुका हूं | लेकिन लगता है तुम पर मेरी बातों का कोई प्रभाव नहीं पड़ा, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम क्षयरोग से पीड़ित हो जाओगे जिस शरीर और अपने तेज पर इतना घमंड है वो नष्ट हो जायेगा. |’ राजा दक्ष के इस श्राप के तुरंत बाद चंद्रमा क्षयरोग से ग्रस्त होकर धूमिल हो गए | उनकी रोशनी जाती रही |
कैसे चन्द्रमा हुए श्राप मुक्त ?
ये देखकर ऋषि मुनि बहुत परेशान हुए | इसके बाद सारे ऋषि मुनि और देवता इंद्र के साथ भगवान ब्रह्मा की शरण में गए | ब्रह्मा जी ने उन्हें एक उपाय बताया | उपाय के अनुसार चंद्रमा को सोमनाथ में भगवान शिव का तप करना था और उसके बाद ब्रह्मा के अनुसार, भगवान शिव के प्रकट होने के बाद वो दक्ष के श्राप से मुक्त हो सकते थे |
चंद्रमा ने ब्रह्मा द्वारा बताए गए उपायों का अनुसरण किया | वे छह महीने तक शिव की कठोर तपस्या करते रहे | चंद्रमा की कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव प्रसन्न हुए | भगवान शिव ने चंद्रमा को दर्शन देकर वर मांगने को कहा | चंद्रमा ने वर मांगा कि ‘हे भगवन, अगर आप मुझसे प्रसन्न हैं तो मुझे इस क्षयरोग से मुक्ति दीजिए और मेरे सारे अपराधों को क्षमा कर दीजिए’ | भगवान शिव ने कहा कि ‘तुम्हें जिसने श्राप दिया है वो भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है | लेकिन इस श्राप का मध्य का मार्ग निकालने का पूरा प्रयास कंरूगा |’
शिव इस श्राप का मध्य का मार्ग निकालते हुए चंद्रमा से कहते हैं कि ‘एक माह में दो पक्ष होते हैं, उसमें से एक पक्ष में तुम निखरते जाओगे | लेकिन दूसरे पक्ष में तुम क्षीण भी होओगे | अर्थात तुम्हारी रोशनी कम होती जाएगी | ये पौराणिक रहस्य है चंद्रमा के शुक्ल और कृष्ण पक्ष का जिसमें एक पक्ष में वो बढ़ते हैं और दूसरे में वो घटते जाते हैं |
शिव जी वरदान के बाद चंद्र देव लुप्त होने के बाद बढने लगते है और जैसे ही वो सम्पूर्ण रूप में आते है तो दक्ष के श्राप के कारण वो कम होने लगते है. तबसे उनका ये क्रम आज तक चल रहा है.
इस दौरान चंद्रमा 27 दिनों तक हर नक्षत्र में जाते है, जब चन्द्रमा अपने सम्पूर्ण रूप में होते है तब वह रोहिणी नक्षत्र में होते है.
एक नक्षत्र कितने दिन का होता है?
यह लगभग 27 दिनों का होता है इसीलिए 27 दिनों का एक नक्षत्र मास कहलाता है।
नक्षत्रों का ज्ञान वेदों और पुराणों में भी वर्णित है, और इनका उपयोग ज्योतिष, खगोल विज्ञान, और धार्मिक अनुष्ठानों में किया जाता है।
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