नरम दल और गरम दल (Garam dal and Naram Kya hai?)

भारत में आजादी से पहले कांग्रेस ही मुख्य पार्टी या मुख्य संगठन था जो भारत की राजनीतिक गतिविधियों में भाग लेता था। लेकिन जैसा की आप जानते है की हर संगठन में दो तरह के सोच वाले लोग होते है। उसकी तरह से इस संगठन में भी दूसरी तरह के सोच वाले लोग निकल कर सामने आये। क्युकी कुछ लोग समझौता करके भारत पर शासन चाहते थे तो कुछ लोगो को किसी भी तरह का समझौता स्वीकार नहीं था।

नरम दल और गरम दल के रूप में कांग्रेस का विभाजन (1905) (Congress ka Vibhajan)  –

पहले वो जो शांति से अंग्रेजो से बात करके या अंग्रेजी हुकूमत के सहयोग से सरकार बनाना चाहते थे दूसरे वो जो शुद्ध रूप से अंग्रेजो से मुक्त होकर अपनी सरकार बनाना चाहते थे. इस कारण कांग्रेस दो भागो में विभाजित हो गयी, क्युकी कुछ लोग शांतिपूर्ण प्रदर्शन या आंदोलन से आजादी चाहते थे और कुछ लोग अंग्रेजो को खदेड़ कर भारत से बाहर कर देना चाहते थे जो आसान नहीं था।

बंगाल विभाजन के बाद काँग्रेस के नरम दल के लोगों के साथ इस दल के स्पष्ट विरोध सामने आये। स्वदेशी आंदोलन की शुरूआत बंगाल विभाजन के परिणामस्वरूप 1905 ई में हुई जिसमें ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार किया गया और स्वदेशी उत्पादन को प्रोत्साहित किया गया। गरम दल स्वदेशी आंदोलन को पूरे देश में लागू करना चाहतें थे जबकि नरमपंथ सिर्फ इसे बंगाल तक सीमित रखना चाहतें थे। मतभेद बढ़तें गये तथा 1907 के कांग्रेस के सूरत अधिवेशन में कांग्रेस ’नरमदल’ व गरमदल’ में विभाजित हो गई। इसलिए एक भाग को नरम दल कहा गया और दूसरे भाग को गरम दल। जिसमें गरम दल के मुख्य नेता बाल गंगाधर तिलक थे। जबकि नरम दल के नेता मोतीलाल नेहरू थे।

स्वतंत्रता में नरम दल का योगदान एवं गरम दल का योगदान के साथ साथ लोगों का भी योगदान रहा है. जिनके योगदान के बिना आजादी की पृष्ठभूमि भी तैयार नहीं हो सकती थी. कांग्रेस का लखनऊ अधिवेशन 1916 ई. में लखनऊ में सम्पन्न हुआ। लखनऊ अधिवेशन में ‘स्वराज्य प्राप्ति’ का भी प्रस्ताव पारित किया गया। कांग्रेस ने ‘मुस्लिम लीग’ द्वारा की जा रही साम्प्रदायिक प्रतिनिधित्व की मांग को भी स्वीकार कर लिया।

गरम दल (Garam Dal Kya Hai?) –

गरम दल के लोग किसी भी कीमत पर आजादी चाहते थे और पूरी आजादी चाहते थे। क्युकी इन्हे अंग्रेजो का हस्तक्षेप बिलकुल भी स्वीकार नहीं था। गरम दल वालों का मानना था कि ऐसी सरकार से तो गुलामी कई गुणा अच्छी है! यदि अंग्रेजों के साथ मिलकर सरकार बनाएंगे तो ये भारत के साथ फिर धोखा होगा. नरम दल वाले वंदे मातरम के विरुद्ध थे क्योंकि उनके अनुसार वह गीत भारतीयों के मन में देशभक्ति की भावना को भरता था| पर लोग वंदे मातरम के दीवाने थे| कई सभाओं में तो यह स्थिति हो गई कि जहाँ वंदे मातरम गीत रात रात भर गाया जाता था। ये वही वन्दे मातरम् गीत है जिसने कभी हम सभी के आदर्श शहीद भगत सिंह, अशफाक उल्लाह खान, क्षुदी राम बोस, राम प्रसाद बिस्मिल, सुभाष चन्द्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद आदि कई क्रांतिकारियों को राष्ट्र हेतु मर मिटने के लिए प्रेरित किया| जिसे गाते गाते लाखो फांसी पर झूल गए। जिनमे से सिर्फ कुछ को ही इतिहास अपने पन्नो में जगह दे पाया।

Source – महात्मा गांधी ने वंदे मातरम गीत से दूरी क्यों बना ली थी?

गरम दल के लोगों को अंग्रेज़ बिलकुल भी पसंद नहीं थे इस दल के नेताओं का मनना था कि स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है और हम इसे प्राप्त करके रहेंगे इसके लिये चाहे कुछ भी करना पड़े हम गुलामी की जंजीर को मिटा कर रहेंगे।

गरम दल के नेता गंगाधर तिलक का कहना था कि अगर हमने अंग्रेजों के साथ सरकार बनाया तो हम अपने देश भारत और भारत की जनता के साथ फिर से धोखा करेंगे। गरम दल के नेता हमेशा वंदे मातरम का नारा लगाते थे क्यों कि अंग्रेजों को यह नारा पसंद नहीं था।

नरम दल (Naram Dal Kya hai?) –

नरम दल के नेता जो अंग्रेजों का समर्थन करते थे क्युकी अंग्रेजो ने भारत में लूट के साथ साथ आधुनिक तकनीक लाने का भी काम किया जिसमे रेलवे इत्यादि का काम प्रमुख है। अंग्रेजो का तकनीक लाने का भी मुख्य उदेश्य लूट के माल को बड़ी बड़ी ट्रैन में लादकर भारत के एक कोने से दूसरे कोने में ले जा सके। इधर जब नरम दल वालों ने देखा कि वंदे मातरम की लोकप्रियता बढ़ती ही जा रही है, तो अंग्रेंजो ने इन पर दबाब बनाया ये सब बंद करवाने का। क्युकी इससे जनता में अंग्रेजो के प्रति क्रांति की भावना (खिलाफत या विरोध) पैदा हो रही थी। क्युकी अगर समर्थन चाहिए तो अंग्रेजो की बात माननी ही पड़ती। तो कुछ नेताओ ने एक अफवाह फैलाई की ” वंदे मातरम मुसलमानों को नहीं गाना चाहिए क्योंकि इसमें बुत परस्ती है! (या वतन की पूजा है) ”

नरम दल के लोग ये बात जानते थे कि “वंदे मातरम संस्कृत” में है जिसे अधिकांश भारत नहीं समझता, और वो वंदे मातरम के अंश लेकर उसका तोड़ मोड़कर अर्थ प्रस्तुत करने लगे| उन्होंने इस बहस की शकल ऐसी बना दी कि जैसे वंदे मातरम देशभक्ति का गीत न होकर कोई धार्मिक गान हो! इस मामले ने इतना तूल पकड़ा की मुस्लिम लोगो को इस्लाम पर खतरा दिखाई दिया और लगा की अपना भी संगठन होना चाहिए. और नरम दल की सहायता से ही भारत में 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हुयी। अर्थात जो बातें मुसलमान भाइयों के मन में कभी नहीं आई, उसका बीज आखिर किसने बोया ये आप समझ सकते है।

और आगे चलकर इसी मुस्लिम लीग ने भारत में रहने वाले  मुस्लिम के लिए अलग धरती की मांग की, क्युकी ये इस्लामिक कानून के हिसाब से जीना चाहते थे। उस जगह का नाम पाकिस्तान रखा अर्थात वो जगह जो पाक है या पवित्र है। आगे चलकर भारत के टुकड़े टुकड़े किये जिसमे एक टुकड़ा बांग्लादेश और दूसरा टुकड़ा आज पाकिस्तान है।

नरम दल धीरे धीरे औपनिवेशिक शासन से समन्वय करके स्वशासन के लक्ष्य को प्रप्त करना चाहता था, जिसके अन्तर्गत नरम दल (भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस) ने ब्रिटेन की द्वितीय विश्वयुद्ध में केवल इस शर्त पर सहायता दी की ब्रिटिश शासन हमें स्वशासन का अवसर देगा ।

उस समय भी कुछ लोगों ने क्रांतिकारियों को उग्रवादी तक कहा। नरम दल के नेता, वामपंथी और अंग्रेज सरकार एक तरफ, तो दूसरी तरफ क्रन्तिकारी, गरम दल के राष्ट्रवादी नेता थे।

मुस्लिम के साथ वामपंथी नेता जोगेंद्र नाथ मंडल तब के तथाकथित दलित नेता करोडो दलितों के साथ भी पाकिस्तान गए क्युकी उन्होंने देश के टुकड़े करने में उनका साथ दिया था। जिसके इनाम के रूप में उन्हें पाकिस्तान का कानून और श्रम मंत्री भी बनाया गया। लेकिन बाद में उन्हें गद्दार करार देकर वहां से वेदखल कर दिया गया। लेकिन उनकी वजह से करोडो दलितों का नर संहार हुआ। जो कभी भारतीय ही थे। आज भी उनको मूलनिवासी कहकर पहले की तरह भड़काया जाता है।

Naram Dal और Garam Dal के Neta कौन कौन थे?

नरम दल और गरम दल के नेताओं के नाम (naram dal aur garam dal ke netao ke naam) कुछ इस प्रकार हैं :

नरम दल के नेताओ के नाम (Naram Dal Ke Neta) –

  • महात्मा गांधी
  • जवाहरलाल नेहरु
  • सरदार वल्लभ भाई  पटेल
  • गोपाल कृष्णा गोखले ,इत्यादि

गरम दल के नेताओ के नाम (Garam Dal ke Neta) –

  • लाला लाजपत राय
  • बाल गंगाधर तिलक
  • विपिनचंद्र पाल
  • चंद्रशेखर आज़ाद
  • सुभाषचंद्र बोस
  • भगत सिंह
  • राज गुरु
  • सुखदेव

क्या आप Lal Bal Pal (लाल-बाल-पाल) को जानते है?

ये गरम दल को बनाने वाले नेता है जिनके कारण भारत से अंग्रेजो को भागना पड़ा था,

लाला लाजपत राय: जिनकी मौत ने ब्रिटिश राज के ताबूत में आखिरी कील ठोंक दी थी। उन्हें भारत के राष्ट्रवादी लोग आज भी उन्हें लाल कह कर याद करते है।

बाल गंगाधर तिलक -ठीक उसी तरह से बाल गंगाधर तिलक को बाल, बाल गंगाधर तिलक का मराठी भाषा में दिया गया नारा “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच” अर्थात स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूंगा, बहुत प्रसिद्ध हुआ.

विपिन पाल : और विपिन पाल को पाल कहकर याद करते है।

गरम दल स्वदेशी के पक्षधर थे और सभी आयातित वस्तुओं के बहिष्कार के समर्थक थे। 1905 के बंग भंग आन्दोलन में उन्होने जमकर भाग लिया। लाल-बाल-पाल की त्रिमूर्ति ने पूरे भारत में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध लोगों को आन्दोलित किया। बंगाल में शुरू हुआ धरना, प्रदर्शन, हड़ताल, और विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार देश के अन्य भागों में भी फैल गया।

Differences between Naram dal and Garam dal in Hindi | नरम दल और गरम दल में क्या अंतर है !!

  • दोनों ही कांग्रेस के विभाजन से बने दल थे, जिसमे एक का नाम नरम दल और दूसरे का नाम गरम दल था.
  • नरम दल का नेतृत्व मोती लाल नेहरू करते थे और गरम दल का नेतृत्व लोकमान्य तिलक करते थे.
  • गरम दल के नेता लोकमान्य तिलक एक क्रन्तिकारी की तरह थे, जिन्होंने यातनाये सही, भूखे रहे, जंगलो में रहे, काला पानी सहा जो हर जगह वन्दे मातरम गाया करते थे
  • वहीं दूसरी ओर नरम दल के नेता जो अंग्रेजों के नियम या अंग्रेजी सविधान का समर्थन करते थे. जिसे हमारे इतिहास में शान्ति से ली गयी आजादी लिखा गया।

For Example taken from 10th Class Book (MP Board)

भारत में राष्ट्रवाद के उदय के समय भारत को स्वतंत्र कराने के लिए संवैधानिक साधनों में विशवास करने वाले व्यक्तियों के दल को नरम दल कहते हैं।

 

  • देश जब आज़ाद हुआ तब नरम दल के नेताओ को शायद ही किसी को फांसी हुयी हो, सिर्फ कभी कभी जेल भेज दिया जाता था क्युकी इन्होने सिर्फ शांति प्रिय प्रदर्शन किये थे जबकि इसी समय गरम दल के नेता या क्रांतिकारी अंग्रेजो से झूझते झूझते ख़त्म हो चुके थे।
  • बाकि को बाद में ख़त्म कर दिया गया जो आज भी सभी संस्पेंस में है । जिसमे सुभाष चंद्र बोष का गायब होना भी शामिल है।
  • नरम दल के लोग हर समय अंग्रेज़ों से समझौते और बातचीत से मामले सुलझाने में लगे रहते थे जबकि गरम दल के लोग अंग्रेजों को पसंद भी नहीं करते थे.
  • गरम दल वाले वन्देमातरम् को राष्ट्र गान बनाना चाहते थे जबकि नरम दल वाले जन गण मन के समर्थक थे।
  • गरम दल स्वदेशी के पक्षधर थे और सभी आयातित वस्तुओं के बहिष्कार के समर्थक थे

अगर आपको कही किसी और किताब में कुछ और नरम दल और गरम दल में अंतर में मिले तो हमें बताये ताकि हम यहाँ जोड़ सके।

डिस्क्लेमर – अगर आपको लगता है कोई तथ्य नहीं है या गलत है तो कमेंट में हमें सूचित करे। क्युकी ज्यादातर जानकारी पब्लिक डोमेन से ली गयी है। सत्यता की पुष्टि नहीं कर, हमें कमेंट करके ठीक कर सकते है। किताबो का reference देना न भूले।

 

 

कुछ हटकर सवाल जवाब –

  1. अगर अंग्रेज नहीं आये होते तो क्या होता?

अगर आपको लगता है कि भारत में स्वतंत्रता की लड़ाई अंग्रेजो के आने के बाद ही शुरू हुआ तो आपको अपने इतिहास के अध्यापक से पूछना चाहिए कि
पृथ्वीराज चौहान, गुरु गोविन्द सिंह, महाराणा प्रताप, शिवाजी महाराज इत्यादि वीर किससे लड़ रहे थे और क्यों?

I hate Indians. they are like Animals – Churchill



FAQs :

भारत में गरम दल आंदोलन का पिता किसे कहा जाता है?

भारत में गरम दल आंदोलन का पिता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Bal Gangadhar Tilak) को कहा जाता है।

नरमपंथी और चरमपंथी दो गुटों में कांग्रेस का विभाजन कब हुआ?

सन 1907 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिवेशन सूरत में हुआ जिसमें कांग्रेस गरम दल और नरम दल नामक दो दलों में बंट गयी। इसी को सूरत विभाजन कहते हैं।

गरम दल के नेता कौन कौन है?

गरम दल के नेताओ के नाम लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक, विपिनचंद्र पाल, चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाषचंद्र बोस, भगत सिंह, राज गुरु, सुखदेव आदि। लेकिन सही मायने में ये नेता नहीं बल्कि बलिदानी थे। इन सभी लोगो ने कही न कही अपने परिवार को त्याग कर कुर्वानी दी है। इन्होने अपने परिवार के बारे में नहीं बल्कि देश के बारे में सोचा। अगर गरम दल के लोग नहीं होते तो शायद भारत ब्रिटिश सरकार का आधा गुलाम होता जिसके गवर्नर नरम दल के किसी नेता में से कोई एक होता। लेकिन सिर्फ एक अनुमान है, जो अब सत्य नहीं है। सत्य बलिदानियों के बलिदान से आपके सामने है।

क्यों कांग्रेस के नरमपंथी आलोचना की गई?

कांग्रेस के नरमपंथी नेताओं की कार्यपद्धति की आलोचना इसलिए की गयी क्युकी भारत में संवैधानिक सुधारों के लिए त्याग व बलिदान की आवश्यकता उस समय की मांग थी। इसके लिए संघर्ष का मार्ग ही उचित मार्ग था। इस विचारधारा के नेताओं ने ‘स्वराज्य तथा स्वदेशी‘ जैसे शब्दों का प्रयोग करके भारतीयों में नया जोश पैदा किया । देश ने क्रांतिकारियों का साथ भी दिया लेकिन जो इनकी विचार से सहमत नहीं थे उन्होंने इन्हे अपराधी कहा।

आखिर भारत की सत्ता बार बार गुलाम क्यों हुयी?

आज भी ऐसे लोगो की कमी नहीं है जिनके हिसाब से अगर अंग्रेज या मुग़ल इस देश को गुलाम नहीं बनाते तो यह देश साधुओं, ऋषियों का देश होता, या रियासतों का देश होता या मुग़लशासित देश होता आदि आदि। लेकिन वे चाणकय ब्राह्मण को भूल जाते है जिनकी वजह से चन्द्रगुप्त ने अखंड भारत बनाया। गुलामी का मुख्य कारण भारत के लोगों के द्वारा अतिथि का सम्मान और सत्कार समझता हूँ क्युकी धोखेबाजी या छल से वे हार गए जो कभी अतिथि बनकर कभी अरब के सौदागर या लार्ड क्लाइव की तरह बिज़नेस करने आये थे, उन्होंने भारत की जनता के साथ छल किया।

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