रसायन विद्या को समझने के लिए आपको श्रीमद भागवत महापुराण को पढ़ना होगा। जहाँ श्री भगवान् विष्णु देवलोक की एक अप्सरा पद्मिनी को रसायन विद्या और मायावी विद्या प्रदान करते है। क्युकी देवलोक की परमसुन्दरी अप्सरा पद्मिनी ने बड़े ही भक्तिभाव से नृत्य करते करते है श्री हरि को याद किया। सारे देवता और ब्रह्मा, और शिव जी भी ये देखकर आश्चर्य चकित हो जाते है। भगवान् विष्णु भी इस तपस्या के परिणाम स्वरूप प्रकट होते है।

श्री हरि – पद्मिनी ! मै तुम्हारी तपस्या से अति प्रसन्न हूँ। कहो किसलिए तुम मेरी आराधना कर रही थी?
पद्मिनी – हे! प्रभु ! में ज्ञान की मारी, आपसे ज्ञान प्राप्त करना चाहती हूँ।
श्री हरि – कैसा ज्ञान ?
पद्मिनी – हे प्रभु ! मुझे मायावी विद्या और रसायन विद्या का प्रदान करे।
श्री हरि – पद्मिनी ! तुम्हे इस विद्या की क्या जरुरत आ पड़ी ? ये तुम्हारे किस काम के ?
पद्मिनी – हे प्रभु ! इन विद्याओ के कारण मुझे देवलोक में और भी सम्मान बढ़ेगा। अन्य सारी अप्सराओं की गिनती में, मैं उन् सबमे श्रेष्ठ हो जायूँगी।
श्री हरि – पद्मिनी ! क्या तुम जानती हो की मायावी विद्या और रसायन विद्या, दोनों ही दिव्य अश्त्र के समान है, अगर सही से उपयोग किया जाए तो जीवन सरल बनता है, और गलत प्रयोग करने पर ये स्वामी का ही सर्वनाश कर देती है?
पद्मिनी – हे प्रभु ! में हमेशा इन विद्याओ को अपने अधीन रखूँगी, कभी भी दुरूपयोग नहीं करुँगी। कृपा करके मुझे विद्या प्रदान करे।
श्री हरि – ठीक है। तुम आँखे बंद करके मेरा ध्यान करो।
श्री हरि – तथास्तु ! लेकिन सर्वदा याद रखना, इनका इस्तेमाल हमेशा त्रिलोक के हित में ही होना चाहिए। (ये कहकर श्री विष्णु भगवान् अंतर्ध्यान हो गए )

पद्मिनी अप्सरा ख़ुशी से झूम उठती है। और इन विद्याओं को प्रयोग करके देखने की सोचती है। मायावी विद्या से भेष बदल कर देखती है। एक रूप से दो रूप में आती है। कभी चिड़ियाँ बनती है तो कभी राक्षसी। इसी तरह से अब सोचा की में मायावी तो हो गयी हु, पर रसायन विद्या का प्रयोग कैसे देखा जाये ?

इसके लिए वो एक ऋषि के आश्रम में जाती है जहाँ ऋषि के दो जुड़वाँ बच्चे झूले में रखे थे। उसने उन्हें अपनी रसायन विद्या से युवा बना दिया। इतने में ऋषि और ऋषि पत्नी का कुटिया में आ जाते है और सारा बृतान्त समझकर क्रोधित हो जाते है।

वो अप्सरा को श्राप देते है की ” पद्मिनी!, तुमने मूर्खतावश एवं अहंकार में आकर प्रकृति के समयचक्र में वाधा उत्पन्न की है। इसलिए तुमको मृत्युलोक में असुरो यहाँ के जन्म लोगी और बच्चो के सुख से वंचित रहोगी, जैसे की हम आज है। तभी तुमको हमारा दुःख समझ में आएगा। क्युकी तूने मेरे बच्चो का बचपन छीन लिया। हाय रे, अभी तक तो मेरी आत्मा इनकी बचपन के सुख से तृप्त भी नहीं हो पाई।

पद्मिनी को आभास होता है की उसने अपने अहंकारवश बहुत बड़ा अनर्थ कर डाला है। वो ऋषि और ऋषि पत्नी से क्षमा, याचना करती है पर वो अपने बच्चो के दुःख से व्याकुल उसे अनसुना करते है। पद्मिनी घबराकर भगवान् विष्णु को याद करती है और कहती है – हे प्रभु मेरी रक्षा करो ! हे दीनानाथ मेरी रक्षा करो, वैसे ही रक्षा करो जैसे आपने एक गजराज की सहायता की थी। हे! लष्मीकांता मेरी सहायता करो”, इस तरह से विलाप करती हुयी श्री हरि को याद करती है।

इतने में भक्त की पुकार सुनकर प्रभु प्रकट हो जाते है। और पद्मिनी से कहते है की “मेरी चेतावनी के बाद भी तुमने इन विद्याओं का गलत इस्तेमाल किया तो कर्म का फल तो मिलकर ही रहेगा। मेरा कर्म के फल में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होता है। जैसा कर्म करोगे वैसा ही फल मिलता है।”

पद्मिनी – प्रभु ! तो क्या आप मेरी सहायता नहीं करेंगे। हे प्रभु! में आपकी शरण में हु। कोई रास्ता बताये। में देवलोक की अप्सरा, असुरो के यहाँ जन्म नहीं लेना चाहती।
श्री हरि – पद्मिनी, तेजस्वी ऋषि का श्राप कभी खाली नहीं जाता। इसलिए तुम्हारा जन्म मृत्युलोक (पृथ्वी) पर शम्बरासुर के साम्राज्य में होगा। तुम इस रसायन विद्या का प्रयोग हमारे अवतार श्री कृष्णा के पुत्र (प्रद्युम्न ) के ऊपर करोगी। उसके बाद तुमको मुक्ति मिल जाएगी। क्युकी इस विद्या का धर्म और त्रिलोक के हित में करते ही, तुम्हारा श्राप पूरा हो जायेगा। यह कह कर प्रभु अंतर्ध्यान हो जाते है।

तो ये तो कहानी थी रसायन विद्या और मायावी विद्या से जुडी हुयी, अब इसके बारे में कुछ प्रकाश डालते है।

मायावी विद्या क्या है?

जिस तरह से प्रकाश है, उसी तरह से अन्धकार भी है, देवता है तो राक्षस भी है। और इनकी विद्याये भी है। देवो के पास दिव्य शक्तियाँ होती है तो वही असुरो के पास मायावी विद्या होती है। मायावी विद्या तंत्र के द्वारा अर्जित की जा सकती है। जबकि दिव्य शक्तियाँ अर्जित करने के लिए हमें मन्त्र की आवश्यकता होती है, और देवो को प्रसन्न करना होता है। हर देवता किसी न किसी दिव्य शक्ति का स्वामी होता है। इसलिए सभी शक्तियों का थोड़ा-बहुत फल मिले इसलिए सभी देवताओ को यज्ञ में आहुति दी जाती है, उन्हें सम्मान, दया और भक्तिभाव से आदर किया जाता है।

मायावी विद्या और दिव्य शक्तियाँ दोनों ही अश्त्र और शस्त्र की तरह होते है। समझते है कैसे।

धर्म और कर्तव्य पर चलने वाला व्यक्ति हमेशा आशीर्वाद देता है। अपनी इन्द्रियों को वश में रखकर, काम क्रोध, लोभ, मोह और लालच पर नियंत्रण रखता है। इससे उसके जीवन में कितने ही सुख या दुःख आये वो हमेशा एक सा चित्त रखता है जिससे उसका यश तीनो लोको में फैलने लगता है। दिव्य शक्तियों का गलत इस्तेमाल करने पर ये शक्तियां उस व्यक्ति को छोड़कर चली जाती है। ठीक वैसे ही जैसे क्रोध आने से विवेक आपको संकट के समय धोखा दे देता है।

मायावी विद्या का इस्तेमाल हमेशा असुरो द्वारा या उनके जैसी प्रवृति रखने वाले मनुष्यो के द्वारा की जाती है। इसे प्राप्त करने के लिए तंत्र की साधना की जाती है। मायावी विद्या का भी दुरूपयोग करने पर ये अपने स्वामी का ही सर्वनाश कर देती है जैसे पद्मिनी अप्सरा को हुआ। मायावी विद्या का इस्तेमाल कभी भी किसी को परेशान करने, प्रकृति में व्यवधान आदि के लिए नहीं करना चाहिए।

ठीक वैसे ही जैसे की आज हमें की बन्दूक का लाइसेंस मिलना आसान है। आप रख भी लेते है। लेकिन जब आप उस बन्दूक का इस्तेमाल किसी अधर्म के कार्य के लिए करते है तो आपको क्रोध आता है, विवेक जाता है, और आपसे कुछ उल्टा कृत्य होता है, और अंत में जेल या कारावास।

रसायन विद्या क्या है?

अब आते है अपने मुख्य शीर्षक रसायन विद्या क्या है। पद्मिनी ने रसायन विद्या का भी गलत इस्तेमाल किया था। रसायन विद्या का तात्पर्य हमारी आज के रसायन शास्त्र या केमिस्ट्री या विज्ञान से ही है। विज्ञान भी मानव जीवन के लिए एक शस्त्र की तरह है, सही इस्तेमाल जीवन को सरल और गलत इस्तेमाल जीवन को भयंकर यातना देता है।
जैसे बन्दूक मानव की अधर्मियों से रक्षा करती है। तो वही परमाणु वम मानवता का विनाश करता है। परमाणु वम भी रसायन विद्या (Chemistry) की देन है।

रसायन विद्या के द्वारा ही पद्मिनी ने सोने की भस्म के द्वारा बच्चो को युवा बनाया। जिससे की प्रकृति का नियम टुटा। आज भी कई लोग रसायन विद्या का गलत इस्तेमाल करते है जैसे चेहरे की सर्जरी, मतलब शरीर के साथ छेड़छाड़, पतले से मोटे होने की दवाई लेना, अर्थात वैज्ञानिक तरीके से आप कोई भी प्रकृति का नियम तोड़ेगे। उसकी सजा निश्चित है। पीढियां अपने पूर्वजो की, की गयी गलती की सजा भोगती है।

कही कही मेने पढ़ा या सुना है की रसायन विद्या के द्वारा किसी भी चीज़ को सोने में परिवर्तित किया जा सकता है। उसके लिए में कहूंगा हरी अनंत, हरी कथा अनंता। आखिर सम्पूर्ण ज्ञान किसे है। लेकिन फिर भी आओ इस बात को मान भी सकते है की – विज्ञान अगर चाहे तो लोहे की धातु को भी सोने की तरह बदल सकता है।” नागार्जुन एक प्रसिद्ध रसायनशास्त्री थे। इन्होंने अपनी पुस्तक ‘रस रत्नाकर’ में विभिन्न धातुओं को शुद्ध करने की विधियां दे रखी है।

मनुष्यो को रसायन विद्या अर्थात आज का विज्ञान मिलने के बाद ऐसा अहंकार पनपा है की वो श्री हरि को कल्पना तक मानते है। उन्हें लगता है विज्ञान की कसौटी पर भगवान् को मापा नहीं जा सकता तो वो है ही नहीं। उनके लिए कहूंगा – क्या अंतरिक्ष का माप है? अगर नहीं है तो मानते क्यों हो? जो लोग रसायन विद्या को अवैज्ञानिक विधि बताते है वो इतने बड़े मुर्ख है की वो स्वयं विज्ञान को ही अवैज्ञानिक बता रहे है। रसायन विज्ञान या रसायन विद्या से शक्तिशाली आज के युग में कुछ नहीं है। परमाणु शक्ति भी रसायन विज्ञान या रसायन विद्या की ही देन है।

कुछ सामान्य प्रश्न –

क्या रसायन विद्या से स्वर्ण बनाया जा सकता है?

बिल्कुल, वैज्ञानिक विधि से या रसायन विज्ञान से ही आज मनुष्य हर तरह की खोज कर पा रहा है. समुचित उपयोग इसे वरदान या अभिशाप बना रही है। इसलिए अगर आपको सोना बनाना है तो उसके लिए आपको वैज्ञानिक रिसर्च करनी होगी, रसायन विद्या का प्रयोग और खोज बड़े ही सोच समझ कर करनी चाहिए। क्युकी शक्तियाँ हर किसी के वश में नहीं हो पाती है।

रसायन विद्या का मंत्र क्या है?

किसी भी वैज्ञानिक विधि को पूरा करने के लिए, उनके गुरु सूत्र बनाते है, वो शिष्यों और मनुष्यो के लिए मन्त्र ही है। जैसे – H2O, CO2

H2O पानी है। जो की मिश्रण है हाइड्रोजन और ऑक्सीज़न का। जहाँ H का मतलब है हाइड्रोजन। 2 इंगित करता है कि पानी के एक अणु में 2 हाइड्रोजन परमाणु होते हैं। O ऑक्सीजन को इंगित करता है। तो H2O पानी बनाने का मन्त्र है या सूत्र है।

रसायन विज्ञान में, CO2 का पूर्ण रूप कार्बन डाइऑक्साइड है। कार्बन डाइऑक्साइड एक बेरंग, गंधहीन गैस है जो हमारे वातावरण में पाई जाती है। इसका रासायनिक सूत्र CO2 है, जिसका अर्थ है कि यह एक कार्बन परमाणु है जो दो ऑक्सीजन परमाणुओं से बंधा है।

रसायन विद्या क्या होती है और रसायन विद्या की जानकारी आपको यहाँ उदाहरण के द्वारा समझाने का प्रयत्न किया है। रसायन विद्या के बारे में सबके अपने अपने विचार है। लेकिन मेरी नज़र में रसायन विद्या का रहस्य बहुत ही साधारण है लेकिन अविष्कार या खोज कठिन है।

अगर आपको इस लेख से सम्बंधित कोई भी प्रश्न हो तो पूछ सकते है। फिर आगे एक नया लेख लिखूंगा, और साथ में समझेंगे पुराणों और वेदो के गूढ़ रहस्यो को।

इस पोस्ट को अपने बच्चो और परिवार को जरूर शेयर करे। धन्यवाद – ट्विटर / Instagram पर मुझे फॉलो करे।

श्रीमद भागवत महापुराण के इस वृतांत को श्री रामानंद सागर ने भी “श्री कृष्ण” धारावाहिक में दिखाया है।

 

Also Read – ‘यक्ष’ ने किए युधिष्ठिर से ये प्रश्न (संवाद) – Yaksh Yudhishthir Samvad

 

अगर आपको भी लिखने का शौक है, तो आप अपनी पोस्ट हमें भेज सकते है

How useful was this Hindi Hai post?

Please rate hindihai.com Post!

Average rating 5 / 5. Vote count: 1

No votes so far! Be the first to rate this post.