हिन्दू पतन – आज जब मैं वीर सावरकर की किताब “मोपाला – अर्थात मुझे इससे क्या” पढ़ रहा था तो पता चला कि जिनके पूर्वजो ने जोगिन्दर नाथ मंडल को नेता बनाया था। और उन्ही जोगिन्दर नाथ मंडल ने देश के बटवारे में लीग का समर्थन किया था, आज वो सनातन पीढ़ी पाकिस्तान और बांग्लादेश में न्याय को तरस रही है। उनके घर की स्त्रियाँ उठा ली गयी, सम्पति लूट ली गयी। इस बात की जानकरी श्री श्यामाप्रसाद मुखर्जी की वेबसाइट पर पड़े एक पीडीऍफ़ से पता चली जिसमे जोगिन्दरनाथ मंडल के इस्तीफे के बारे में बताया गया था।

जोगिन्दर नाथ मंडल ने उन दलितों को अपने पक्ष में किया जो गरीब थे, और शास्त्रों से दूर अर्थात अज्ञानी थे, मंडल ने उनके हृदय में क्षत्रिय, ब्राह्मण के खिलाफ द्वेष पैदा करके, उन्हें समझाया कि हम लीग के द्वारा बसाये गए नए देश में अर्थात जन्नत की जिंदगी जियेंगे। क्युकी हमारा खान-पान उनसे मिलता जुलता है। और इस कारण से हम हमेशा ही क्षत्रिय और ब्राह्मण के साथ छूआछूत का शिकार होते रहेंगे।

नोट – विनायक दामोदर वीर सावरकर ने अपनी किताब में इस सत्य को उजागर किया गया है – Book यहाँ देखे

आज स्वयं देख लो –

पाकिस्तान और बांग्लादेश हिन्दू की स्थिति को देखकर श्रीमद भगवदगीता के द्वारा बताये गए नीचे दिए गए सत्य का स्मरण हो आता है कि अधर्म को चुनने वाले पूर्वजों के वंश नष्ट हो जाते है। श्रीमदभगवदगीता में अर्जुन इस भय को भगवान के आगे रखे रहे है। –

यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम्।। 1.38

कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मान्निवर्तितुम्।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन।। 1.39

यधपि लोभ से भ्रष्टचित्त हुए ये लोग से कुल के नाश से उत्पन्न दोष को और मित्रों से विरोध करने में पाप को नहीं देखते, तो भी हे जनार्दन ! कुल के नाश से उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हटने के लिये क्यों नहीं विचार करना चाहिये ?

कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुलधर्माः सनातनाः।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोऽभिभवत्युत।। 1.40

कुल के नष्ट होने से सनातन धर्म नष्ट हो जाते हैं। धर्म नष्ट होने पर सम्पूर्ण कुल को अधर्म (पाप) दबा लेता है।

अधर्माभिभवात्कृष्ण प्रदुष्यन्ति कुलस्त्रियः।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जायते वर्णसङ्करः।। 1.41

हे कृष्ण! अधर्म के अधिक बढ़ जाने से कुल की स्त्रियाँ दूषित हो जाती हैं; (और) हे वार्ष्णेय! स्त्रियों के दूषित होने पर वर्ण संकर पैदा हो जाते हैं।

सङ्करो नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च।
पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।। 1.42

वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने वाला ही होता है। श्राद्ध और तर्पण न मिलने से इन- (कुलघातियों) के पितर भी अपने स्थान से गिर जाते हैं।

दोषैरेतैः कुलघ्नानां वर्णसङ्करकारकैः।
उत्साद्यन्ते जातिधर्माः कुलधर्माश्च शाश्वताः।। 1.43

इन वर्णसंकर पैदा करने वाले दोषों से कुलघातियों के सदा से चलते आये कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं।

उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन।
नरकेऽनियतं वासो भवतीत्यनुशुश्रुम। 1.44

हे जनार्दन! जिनके कुल धर्म नष्ट हो जाते हैं, उन मनुष्यों का बहुत काल तक नरकों में वास होता है, ऐसा हम सुनते आये हैं।

 

हिन्दुओं को क्या करना चाहिए? –

कहते है कि पूर्वजों की गलती का फल उनके वंशजो को भी भुगतना पड़ता है। हालाँकि वह भी उनके पिछले जन्मो के कर्मो के कारण ही होता है लेकिन ऐसी स्थिति में मनुष्य को अपना सनातन धर्म अर्थात वह धर्म जो आत्मा का धर्म है, उसे बचाने के लिए क्या करना चाहिए, वह भगवान् स्वयं बताते है कि –

य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम्।
उभौ तौ न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।। 2.19

जो मनुष्य इस अविनाशी शरीरी को मारने वाला मानता है और जो मनुष्य इसको मरा मानता है, वे दोनों ही इसको नहीं जानते; क्योंकि यह न मारता है और न मारा जाता है।

न जायते म्रियते वा कदाचि
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे।। 2.20

यह शरीरी न कभी जन्मता है और न मरता है तथा यह उत्पन्न होकर फिर होने वाला नहीं है। यह जन्म रहित, नित्य-निरन्तर रहने वाला, शाश्वत और पुराण (अनादि) है। शरीर के मारे जाने पर भी यह नहीं मारा जाता।

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत।। 2.18

इस नाश रहित अप्रमेय नित्य देही आत्मा के ये सब शरीर नाश वान् कहे गये हैं। इसलिये हे भारत ! तुम युद्ध करो।। (आत्म रक्षा के लिए)

अथ चैत्त्वमिमं धर्म्यं संग्रामं न करिष्यसि।
ततः स्वधर्मं कीर्तिं च हित्वा पापमवाप्स्यसि।। 2.33

और यदि तुम इस धर्मयुद्ध को स्वीकार नहीं करोगे, तो स्वधर्म और कीर्ति को खोकर पाप को प्राप्त करोगे।।

अकीर्तिं चापि भूतानि कथयिष्यन्ति तेऽव्ययाम्।
संभावितस्य चाकीर्तिर्मरणादतिरिच्यते।। 2.34

और सब लोग तुम्हारी बहुत काल तक रहने वाली अपकीर्ति को भी कहते रहेंगे; और सम्मानित पुरुष के लिए अपकीर्ति मरण से भी अधिक होती है।।

 

भगवान् होते है कि नहीं संदेह है ? –

YouTube नकारात्मक ऊर्जा के मंत्रो वाले Videos से भरा पड़ा है, उन्हें देखकर पता चलता है कि मनुष्य गिरकर कहाँ पहुँचता है। कैसे कुछ अधर्मी और विधर्मी  तांत्रिक नकारात्मक ऊर्जाओं को अपने घर का कुत्ता बनाकर रखते है। थोड़े से भोग, भेट, प्रसाद के लालच में क्या-क्या नहीं करवाते। वे उस अनंत समय तक गुलाम बनकर रह सकते है। जब तक भगवान् धर्म की रक्षा और अधर्म के नाश के लिए स्वयं अवतरित नहीं होते क्युकि उनकी मुक्ति के लिए उनकी पीढ़ी ही नहीं बची, क्युकी उस पीढ़ी को उनके स्वकर्मो ने विधर्मी बना दिया। वास्तव में यही असली पतन है।

अगर संदेह है तो YouTube के माध्यम से नकारात्मक शक्तियों को एक रात में सिद्द कीजिये और उड़ता तीर ले लीजिये ।

तब आप स्वयं अनुभव करेंगे कि जब नकारात्मक और सकारात्मक ऊर्जा होती है तो भगवान भी होते ही है। इसलिए स्वयं का और स्वयं के वंशजो का पतन, स्वयं का सनातन धर्म बचाने से ही संभव है।

लेकिन जो लोग मंडल के साथ गए नहीं ?-

अब आप कहेंगे कि जो लोग मंडल के साथ पाकिस्तान या बांग्लादेश नहीं गए, उनके साथ अत्याचार क्यों हो रहा है?

आपकी शंका बिल्कुल सही है। जो लोग बेचारे पहले से रह रहे थे, उनका क्या दोष जो आज उनको भी सहना पढ़ रहा है।

तो मुझे लगता है इसके पीछे निम्न काऱण हो सकते है –

1. ये कलियुग है, भगवान आपकी परीक्षा ले रहे है कि आप धर्म चुनते है या अधर्म। अर्थात आप हर बार यही सोचते है कि मुझे इससे क्या लेना देना, में और मेरा परिवार तो सुरक्षित है तो अगला नंबर आपकी पीढ़ी का भी आएगा।

2. ये लोग चाहते तो 1947 में बटवारे का विरोध कर सकते थे। लेकिन उल्टा इनको ही काट काट कर ट्रेनें भरकर भारत भेजी गयी थी।

3. या ये भी हो सकता है कि जिन्होंने आत्मरक्षा के लिए प्रयास किया था उन्हें वीरगति प्राप्त हुयी हो, वे सच्चे शहीद हो। वे भगवान् की परीक्षा में पास हुए हो।

4.या शायद वे आत्मरक्षा के ज्ञान से अनभिज्ञ थे क्युकि जो आत्मरक्षा के अधिकार के बारे में नहीं जानता, तो यह उसके स्वतः ही आत्महत्या स्वीकार करने जैसा है।

इसलिए यह याद रखना अत्यंत आवश्यक है कि हमारे गलत निर्णय, हमारी पीढ़ी को गर्त में डाल देते है, और उसी की बारे में ऊपर अर्जुन भगवान् श्री कृष्ण से कह रहे है।

स्वयं के धर्म की आत्मरक्षा करने से बचाने से क्या मिलेगा ? –

1 अगर युद्द जीते तो वीरों को और उनके वंशजो को पृथ्वी का सुख मिलता है।
2. अगर मारे गए तो वीरगति के माध्यम से सीधा स्वर्ग का सुख प्राप्त होता है।

यदि आत्मरक्षा करने में भी भय लगता है तो –

आत्मरक्षा के गुण पैदा करना सरल है, उसके लिए –

स्वयं को पहचाने –

आत्मरक्षा करने के लिए आत्मविश्वास होना आवश्यक है, और आत्मविश्वास के लिए अपनी आत्मा को जानना आवश्यक है, और आत्मा को जानने के लिए अपने आचरण या प्रवृति को जानना आवश्यक है, कि आपका झुकाव सत्य, प्रेम, दया, और सनातन सत्य की ओर है या छल, कपट, ईर्ष्या, द्वेष और असत्य की तरफ। (खान पान को छोड़कर )

आचरण या प्रवृति बदलें –

ये भी कोई कठिन कार्य नहीं है। अगर दंगो की समस्या आपके दरवाजे पर आ गई है और आपको आत्मरक्षा करना है तो पूर्ण विश्वास के साथ श्रीदुर्गासप्ति का हिंदी में पाठ करे, अगर संस्कृत नहीं आती है। हाथ में जल लेकर संकल्प लेकर श्री बटुक भैरव के साथ माता को पुकारे। सिर्फ कुछ ही दिनों में वे माता आपके अंदर आत्मविश्वास के रूप में प्रकट हो जाएगी।

अब आप अपनी ही नहीं बल्कि अपने परिवार और समाज की भी रक्षा करने के लिए तैयार है। जैसे महाराज शिवाजी दक्षिण भारत से आंक्रताओं को खदेड़ते हुए आये थे। आज भी हर हिन्दू को महाराज शिवाजी की तरह स्वयं की और स्वयं के परिवार की आत्म रक्षा के लिए जागना नितांत आवश्यक है। महाराज शिवाजी पिता महादेव और माँ भवानी के परम भक्त थे। चाहे तो उनका इतिहास उठाकर देख लो।

आत्मरक्षा का अधिकार हर देश का संविधान देता है, सनातन शास्त्र देता है। श्री कृष्ण ने अर्जुन को उसी आत्मरक्षा के लिए जगाया है। अब आप स्वयं अपने विवेक से निर्णय कीजिये की क्या गलत है और क्या सही।

जय श्री हनुमान, जय माँ भद्रकाली, जय श्री बटुक भैरव नाथ
जय श्री राम, हर हर महादेव। 

 

नोट – दी गयी जानकारी मेरे स्वयं के भाव, विचार और ज्ञान के आधार मात्र पर है। इसका सम्बन्ध किसी विशेष व्यक्ति, धर्म और जाति से नहीं है। मेरी जानकारियों के स्रोतों को ध्यान से पढ़े और समझे। फिर भी हो सकता है समझने में गलती हुयी हो तो क्षमाप्रार्थी हूँ। इस ब्लॉग का मुख्य बिन्दु “आत्मरक्षा” को ध्यान में रखना मात्र है

Guest Post by – Pradeep Tomar

 

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