अर्द्धनारीश्वर की कथा – आपने अपने घर या जहा कही भी शिव जी और पारवती माँ की फोटो को एक साथ जुड़े हुए (अर्धनारेश्वर रूप ) देखा है तो जरूर सोचा होगा की इसके पीछे की कहानी क्या है. इस स्वरूप में संसार के विकास की कहानी छुपी है। शिव पुराण, नारद पुराण सहित दूसरे अन्य पुराण भी कहते हैं कि अगर शिव और माता पार्वती इस स्वरूप को धारण नहीं करते तो सृष्टि आज भी विरान रहती। आज हम शिव जी के इसी अर्धनारेश्वर रूप के पीछे की कहानी जानेगे. वैसे देखा जाये इसके पीछे दो कहानिया जिन्हें में आप एक एक करके पढ़ सकते है.
महादेव के Ardhnarishwar अवतार से जुडी पहली Katha:
“शीश गंग अर्धंग पार्वती….. नंदी भृंगी नृत्य करत है”
अर्द्धनारीश्वर – शिव स्तुति में आये इस भृंगी नाम को आप सब ने जरुर ही सुना होगा। पौराणिक कथाओं के अनुसार ये एक ऋषि थे जो महादेव के परम भक्त थे, लेकिन ये सिर्फ शिव जी को पूजा या आराधना करते थे माता पार्वती को नहीं. हालांकि उनकी भक्ति पवित्र और अदम्य थी, उनकी शिव में इतनी आसक्ति थी जिसमे उन्हें शिव के आलावा कुछ और नजर ही नही आता था।
एक बार तो ऐसा हुआ की वो कैलाश पर भगवान शिव की परिक्रमा करने गए लेकिन वो पार्वती की परिक्रमा नही करना चाहते थे। ऋषि के इस कृत्य पर माता पार्वती ने ऐतराज प्रकट किया और कहा कि हम दो शरीर एक जान है तुम ऐसा नही कर सकते। पर शिव भक्ति की कट्टरता देखिये भृंगी ऋषि ने पार्वती जी को अनसुना कर दिया और भगवान शिव की परिक्रमा लगाने बढे। किन्तु ऐसा देखकर माता पार्वती शिव से सट कर बैठ गई। इस किस्से में और नया मोड़ तब आता है जब भृंगी ने सर्प का रूप धरा और दोनों के बीच से होते हुए शिव की परिक्रमा देनी चाही।
तब भगवान शिव ने माता पार्वती का साथ दिया और संसार में महादेव के अर्धनारीश्वर रूप का जन्म हुआ। अब भृंगी ऋषि क्या करते किन्तु गुस्से में आकर उन्होंने चूहे का रूप धारण किया और शिव और पार्वती को बीच से कुतरने लगे।
ऋषि के इस कृत्य पर आदिशक्ति को क्रोध आया और उन्होंने भृंगी ऋषि को श्राप दिया कि जो शरीर तुम्हे अपनी माँ से मिला है वो तत्काल प्रभाव से तुम्हारी देह छोड़ देगा।
हमारी तंत्र साधना कहती है कि मनुष्य को अपने शरीर में हड्डिया और मांसपेशिया पिता की देन होती है जबकि खून और मांस माता की देन होते है l श्राप के तुरंत प्रभाव से भृंगी ऋषि के शरीर से खून और मांस गिर गया। भृंगी निढाल होकर जमीन पर गिर पड़े और वो खड़े भी होने की भी क्षमता खो चुके थे l तब उन्हें अपनी भूल का एहसास हुआ और उन्होंने माँ पार्वती से अपनी भूल के लिए क्षमा मांगी।
हालाँकि तब पार्वती ने द्रवित होकर अपना श्राप वापस लेना चाहा किन्तु अपराध बोध से भृंगी ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया l ऋषि को खड़ा रहने के लिए सहारे स्वरुप एक और (तीसरा) पैर प्रदान किया गया जिसके सहारे वो चल और खड़े हो सके तो भक्त भृंगी के कारण ऐसे हुआ था महादेव के अर्धनारीश्वर रूप का उदय।
महादेव के Ardhnarishwar Avtaar से जुडी दूसरी Story:
अर्द्घनारीश्वर स्वरूप के विषय में जो कथा पुराणों में दी गयी है उसके अनुसार ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचना का कार्य समाप्त किया तब उन्होंने देखा कि जैसी सृष्टि उन्होंने बनायी उसमें विकास की गति नहीं है। जितने पशु-पक्षी, मनुष्य और कीट-पतंग की रचना उन्होंने की है उनकी संख्या में वृद्घि नहीं हो रही है। इसे देखकर ब्रह्मा जी चिंतित हुए। अपनी चिंता लिये ब्रह्मा जी भगवान विष्णु के पास पहुंचे। विष्णु जी ने ब्रह्मा से कहा कि आप शिव जी की आराधना करें वही कोई उपाय बताएंगे और आपकी चिंता का निदान करेंगे।
ब्रह्मा जी ने शिव जी की तपस्या शुरू की इससे शिव जी प्रकट हुए और मैथुनी सृष्टि की रचना का आदेश दिया। ब्रह्मा जी ने शिव जी से पूछा कि मैथुन सृष्टि कैसी होगी, कृपया यह भी बताएं। ब्रह्मा जी को मैथुनी सृष्टि का रहस्य समझाने के लिए शिव जी ने अपने शरीर के आधे भाग को नारी रूप में प्रकट कर दिया।
इसके बाद नर और नारी भाग अलग हो गये। ब्रह्मा जी नारी को प्रकट करने में असमर्थ थे इसलिए ब्रह्मा जी की प्रार्थना पर शिवा यानी शिव के नारी स्वरूप ने अपने रूप से एक अन्य नारी की रचना की और ब्रह्मा जी को सौंप दिया। इसके बाद अर्द्घनारीश्वर स्वरूप एक होकर पुनः पूर्ण शिव के रूप में प्रकट हो गया। इसके बाद मैथुनी सृष्टि से संसार का विकास तेजी से होने लगा। शिव के नारी स्वरूप ने कालांतर में हिमालय की पुत्री पार्वती रूप में जन्म लेकर शिव से मिलन किया।
।। अर्द्धनारीश्वर नटेश्वरस्तोत्रम् ।।
परमपूज्य आदि शंकराचार्य जी द्वारा विरचित एक प्राण दो देह के स्वरुप में स्थित भगवान् अर्धनारी नटेश्वर स्तोत्र है । भगवती शिवा के बिना भगवान् शिव अर्ध् स्वरुप हैं । इन आठ श्लोकों के द्वारा आचार्य शंकर ने भगवान् के अर्धनारीश्वर स्वरुप का स्मरण करते हुए प्रणाम किया है ।
चाम्पेयगौरार्धशरीरकायै कर्पूरगौरार्धशरीरकाय ।
धम्मिल्लकायै च जटाधराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥१॥
आधे शरीर में चम्पापुष्पों-सी गोरी पार्वतीजी हैं और आधे शरीर में कर्पूर के समान गोरे भगवान् शंकरजी सुशोभित हो रहे हैं। भगवान् शंकर जटा धारण किये हैं और पार्वतीजी के सुन्दर केशपाश सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शंकर को प्रणाम है ।
कस्तूरिकाकुङ्कुमचर्चितायै चितारजःपुञ्जविचर्चिताय ।
कृतस्मरायै विकृतस्मराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥२॥
भगवती पार्वती के शरीर में कस्तूरी और कुंकुम का लेप लगा है और भगवान् शंकर के शरीर में चिता-भस्म का पुंज लगा है। भगवती कामदेव को जलाने वाली हैं और भगवान् शंकर उसे नष्ट करने वाले हैं, ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शंकर को प्रणाम है ।
चलत्क्वणत्कङ्कणनूपुरायै पादाब्जराजत्फणिनूपुराय ।
हेमाङ्गदायै भुजगाङ्गदाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥३॥
भगवती पार्वती के हाथों में कंकण और पैरों में नूपुरों की ध्वनि हो रही है तथा भगवान् शंकर के हाथों और पैरों में सर्पों के फुफकार की ध्वनि हो रही है। भगवती पार्वती की भुजाओं में सुवर्ण के बाजूबन्द सुशोभित हो रहे हैं और भगवान् शंकर की भुजाओं में सर्प सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शंकर को प्रणाम है ।
विशालनीलोत्पललोचनायै विकासिपङ्केरुहलोचनाय ।
समेक्षणायै विषमेक्षणाय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥४॥
भगवती पार्वती के नेत्र प्रफुल्लित नीले कमल के समान सुन्दर हैं और भगवान् शंकर के नेत्र विकसित कमल के समान हैं। भगवती पार्वती के दो सुन्दर नेत्र हैं और भगवान् शंकर के (सूर्य, चन्द्रमा तथा अग्नि ये) तीन नेत्र हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शंकर को प्रणाम है ।
मन्दारमालाकलितालकायै कपालमालाङ्कितकन्धराय ।
दिव्याम्बरायै च दिगम्बराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥५॥
मन्दार-पुष्पों की माला भगवती पार्वती के केशपाशों में सुशोभित है और भगवान् शंकर के गले में मुण्डों की माला सुशोभित हो रही है। भगवती पार्वती के वस्त्र अतिदिव्य हैं और भगवान् शंकर दिगम्बररूप में सुशोभित हो रहे हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शंकर को नमस्कार है ।
अम्भोधरश्यामलकुन्तलायै तडित्प्रभाताम्रजटाधराय ।
निरीश्वरायै निखिलेश्वराय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥६॥
भगवती पार्वती के केश जल से भरे काले मेघ के समान सुन्दर हैं और भगवान् शंकर की जटा विद्युत्प्रभा के समान कुछ लालिमा लिये हुए चमकती दीखती है। भगवती पार्वती परम स्वतन्त्र हैं अर्थात् उनसे बढ़कर कोई नहीं है और भगवान् शंकर सम्पूर्ण जगत् के स्वामी हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शंकर को नमस्कार है ।
प्रपञ्चसृष्ट्युन्मुखलास्यकायै समस्तसंहारकताण्ड ।
जगज्जनन्यै जगदेकपित्रे नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥७॥
भगवती पार्वती लास्य नृत्य करती हैं और उससे जगत् की रचना होती है और भगवान् शंकर का नृत्य सृष्टिप्रपंच का संहारक है। भगवती पार्वती संसार की माता और भगवान् शंकर संसार के एकमात्र पिता हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शंकर को नमस्कार है ।
प्रदीप्तरत्नोज्वलकुण्डलायै स्फुरन्महापन्नगभूषणाय ।
शिवान्वितायै च शिवान्विताय नमः शिवायै च नमः शिवाय ॥ ८॥
भगवती पार्वती प्रदीप्त रत्नों के उज्ज्वल कुण्डल धारण किये हुई हैं और भगवान् शंकर फूत्कार करते हुए महान् सर्पों का आभूषण धारण किये हैं। भगवती पार्वती भगवान् शंकर की और भगवान् शंकर भगवती पार्वती की शक्ति से समन्वित हैं। ऐसी भगवती पार्वती और भगवान् शंकर को नमस्कार है ।
एतत् पठेदष्टकमिष्टदं यो भक्त्या स मान्यो भुवि दीर्घजीवी ।
प्राप्नोति सौभाग्यमनन्तकालं भूयात् सदा तस्य समस्तसिद्धिः ॥९॥
आठ श्लोकों का यह अर्द्धनारीश्वर स्तोत्र इष्टसिद्धि करने वाला है। जो व्यक्ति भक्तिपूर्वक इसका पाठ करता है, वह समस्त संसार में सम्मानित होता है और दीर्घजीवी बनता है, अनन्त काल के लिये सौभाग्य प्राप्त करता है एवं अनन्त काल के लिये सभी सिद्धियों से युक्त हो जाता है ।
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचितं अर्धनारीनटेश्वरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
Sanatan Science – प्रेम से बोलिये अर्द्धनारीश्वर जी की जय और सदा वो आपके और हमारे ह्रदय में विराजमान रहे.