गरुण पुराण में मृत्यु पश्चात की घटनाओं, प्रेत लोक, यम लोक, नरक तथा 84 लाख योनियों के नरक स्वरुपी जीवन आदि के बारे में भगवान विष्णु ने अपने वाहन गरुड़ को विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा भी इस ग्रन्थ में कई मानव उपयोगी बातें लिखी है जिनमे से एक है की किस तरह के लोगों के घर भोजन नहीं करना चाहिए।
1. कोई चोर या अपराधी (criminal) –
कोई व्यक्ति चोर है, न्यायालय में उसका अपराधी सिद्ध हो गया हो तो उसके घर का भोजन नहीं करना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार चोर के यहां का भोजन करने पर उसके पापों का असर हमारे जीवन पर भी हो सकता है।
वो कहते है न जैसा अन्न, वैसा मन।
2. चरित्रहीन स्त्री (Characterless woman) –
इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि चरित्रहीन स्त्री के हाथ से बना हुआ या उसके घर पर भोजन नहीं करना चाहिए। यहां चरित्रहीन स्त्री का अर्थ यह है कि जो स्त्री स्वेच्छा से पूरी तरह अधार्मिक आचरण करती है। गरुड़ पुराण में लिखा है कि जो व्यक्ति ऐसी स्त्री के यहां भोजन करता है, वह भी उसके पापों का फल प्राप्त करता है।
वो कहते है न जैसा अन्न, वैसा मन।
3. सूदखोर (gombeen-man) –
वैसे तो आज के समय में काफी लोग ब्याज पर दूसरों को पैसा देते हैं, लेकिन जो लोग दूसरों की मजबूरी का फायदा उठाते हुए अनुचित रूप से अत्यधिक ब्याज प्राप्त करते हैं, गरुड़ पुराण के अनुसार उनके घर पर भी भोजन नहीं करना चाहिए। किसी भी परिस्थिति में दूसरों की मजबूरी का अनुचित लाभ उठाना पाप माना गया है। गलत ढंग से कमाया गया धन, अशुभ फल ही देता है।
वो कहते है न जैसा अन्न, वैसा मन।
4. रोगी व्यक्ति (Sick person) –
यदि कोई व्यक्ति किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित है, कोई व्यक्ति छूत के रोग का मरीज है तो उसके घर भी भोजन नहीं करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति के यहां भोजन करने पर हम भी उस बीमारी की गिरफ्त में आ सकते हैं। लंबे समय से रोगी इंसान के घर के वातावरण में भी बीमारियों के कीटाणु हो सकते हैं जो कि हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
5. अत्यधिक क्रोधी व्यक्ति (Hothead) –
क्रोध इंसान का सबसे बड़ा शत्रु होता है। अक्सर क्रोध के आवेश में व्यक्ति अच्छे और बुरे का फर्क भूल जाता है। इसी कारण व्यक्ति को हानि भी उठानी पड़ती है। जो लोग हमेशा ही क्रोधित रहते हैं, उनके यहां भी भोजन नहीं करना चाहिए। यदि हम उनके यहां भोजन करेंगे तो उनके क्रोध के गुण हमारे अंदर भी प्रवेश कर सकते हैं।
वो कहते है न जैसा अन्न, वैसा मन।
6. नपुंसक या किन्नर (Eunuch) –
किन्नरों को दान देने का विशेष विधान बताया गया है। ऐसा माना जाता है कि इन्हें दान देने पर हमें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। गरुड़ पुराण में बताया गया है कि इन्हें दान देना चाहिए, लेकिन इनके यहां भोजन नहीं करना चाहिए। किन्नर कई प्रकार के लोगों से दान में धन प्राप्त करते हैं। इन्हें दान देने वालों में अच्छे-बुरे, दोनों प्रकार के लोग होते हैं।
जिन्हे हम दान देते है उनके यहाँ भोजन नहीं करना चाहिए, अगर कभी आपद्धर्म में करना भी पड़े तो उसका मोल चुका देना चाहिए।
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7. निर्दयी व्यक्ति (Ruthless person) –
यदि कोई व्यक्ति निर्दयी है, दूसरों के प्रति मानवीय भाव नहीं रखता है, सभी को कष्ट देते रहता है तो उसके घर का भी भोजन नहीं खाना चाहिए। ऐसे लोगों द्वारा अर्जित किए गए धन से बना खाना हमारा स्वभाव भी वैसा ही बना सकता है। हम भी निर्दयी बन सकते हैं। जैसा खाना हम खाते हैं, हमारी सोच और विचार भी वैसे ही बनते हैं।
वो कहते है न जैसा अन्न, वैसा मन।
8. निर्दयी राजा (Ruthless king) –
यदि कोई राजा निर्दयी है और अपनी प्रजा का ध्यान न रखते हुए सभी को कष्ट देता है तो उसके यहां का भोजन नहीं करना चाहिए। राजा का कर्तव्य है कि प्रजा का ध्यान रखें और अपने अधीन रहने वाले लोगों की आवश्यकताओं को पूरी करें। जो राजा इस बात का ध्यान न रखते हुए सभी को सताता है, उसके यहां का भोजन नहीं खाना चाहिए।
वो कहते है न जैसा अन्न, वैसा मन।
9. चुगलखोर व्यक्ति (Snobber) –
जिन लोगों की आदत दूसरों की चुगली करने की होती है, उनके यहां या उनके द्वारा दिए गए खाने को भी ग्रहण नहीं करना चाहिए। चुगली करना बुरी आदत है। चुगली करने वाले लोग दूसरों को परेशानियों फंसा देते हैं और स्वयं आनंद उठाते हैं। इस काम को भी पाप की श्रेणी में रखा गया है। अत: ऐसे लोगों के यहां भोजन करने से बचना चाहिए।
वो कहते है न जैसा अन्न, वैसा मन।
10. नशीली चीजें बेचने वाले (Drug dealer) –
नशा करना भी पाप की श्रेणी में ही आता है और जो लोग नशीली चीजों का व्यापार करते हैं, गरुड़ पुराण में उनका यहां भोजन करना वर्जित किया गया है। नशे के कारण कई लोगों के घर बर्बाद हो जाते हैं। इसका दोष नशा बेचने वालों को भी लगता है। ऐसे लोगों के यहां भोजन करने पर उनके पाप का असर हमारे जीवन पर भी होता है। शहरों में जो लोग नशीली चीज़े अपने घर के अंदर बेंचते है उनमे से कुछ लोगो को साहसी बोला जाता है। उनका अन्न ग्रहण करने से आपका मन ख़राब होगा।
वो कहते है न जैसा अन्न, वैसा मन।
11. बेटी के घर खाना क्यों नहीं खाना चाहिए?
हमारे यहाँ सबसे बड़ा दान, कन्या दान माना जाता है। इससे बड़ा दान कोई नहीं है। इसलिए माता पिता अपनी बेटी के ससुराल में खाना नहीं खाते हैं और कई लोग तो बेटी के घर का पानी भी नहीं पीते, कन्यादान के बाद हमे कन्या के घर न तो भोजन करना चाहिए नहीं कोई चीज़, रूपए, पैसे लेने चाहिए। अगर ऐसा करते है तो यह ऋण के रूप में जमा हो जाता है। ठीक वैसे ही अगर गौ दान कर दिया है तो उस गौ दान के बाद उसी गौ का दूध या संतति को लेना निषेध होता है। दान करने के बाद उस पर किसी भी प्रकार का अधिकार नहीं रहता है।
लेकिन अगर पुत्री स्वाभाव या प्रेमवश भोजन करवाने की जिद करे तो सहर्ष स्वीकार लेना चाहिए लेकिन उसका मोल किसी न किसी रूप में तुरंत उसे वापस कर देना चाहिए। इससे उसकी भावना का भी सम्मान हो जाता है और आपके अंदर भी अपराध बोध नष्ट हो जाता है।
जिन्हे हम दान देते है उनके यहाँ भोजन नहीं करना चाहिए, अगर कभी आपद्धर्म में करना भी पड़े तो उसका मोल चुका देना चाहिए।
वो कहते है न जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि।
12. ब्राह्मण के घर भोजन क्यों नहीं करना चाहिए?
जो ब्राह्मण तीनो काल की पूजा, पाठ या सात्विक जीवन जीने के साथ साथ भगवान का विधि विधान से पूजा पाठ करते है। उन ब्राह्मण के घर भोजन नहीं करना चाहिए लेकिन भोजन करने से मना भी नहीं करना चाहिए। अर्थात –
ऐसे ब्राह्मणों के घर का भोजन प्रसाद होता है, वे रसोई तैयार करते समय भी भगवान् को भोग लगाते है। तो ब्राह्मण के घर भोजन भर पेट न करके प्रसाद के रूप में लेना चाहिए, और वर्तन को साफ करके आना चाहिए। अन्यथा ब्राह्मणों से सेवा लेने का पाप लग जायेगा। प्रसाद पाने के बाद दक्षिणा स्वरुप उसका मोल चुका देना चाहिए।
अगर आपके मन में इस प्रकार का भाव नहीं है, या आप मांस मदिरा का सेवन करते है, तो आपको उनके यहाँ का भोजन नहीं करना चाहिए, क्युकी आप उनके प्रसाद के अधिकारी नहीं है। क्युकी आप उनके वर्तनो की पवित्रता नष्ट करके आएंगे, जिसका अथाह पाप लगेगा।
वो कहते है न जैसी दृष्टि, वैसी सृष्टि।
13. मृत्यु भोज नहीं खाना चाहिए?
जो लोग सात्विक जीवन जीते है और जिन्हे शास्त्रों का ज्ञान है वे मृत्यु भोज में भाग नहीं लेते है। मृत्यु भोज साधारण लोगो को नहीं करना चाहिए क्युकी शोक से संतप्त परिवार के द्वारा तैयार किये हुए भोज में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह अत्यधिक होता है। उस ऊर्जा को केवल ब्राह्मण ही पचा सकता है। क्युकी ब्राह्मण की पीढ़ियाँ हमेशा ऊर्जा का संग्रह करती आयी है। इसलिए सोलहवें संस्कार अर्थात अंतिम संस्कार और श्राध्द के दौरान केवल सात्विक ब्राह्मणों को श्रध्दा से भोजन करवाना चाहिए। ताकि वे उस आत्मा के लिए आशीर्वाद वचन दे सके। जो ब्राह्मण जितना बड़ा साधक होगा वह उतना बड़ा आशीर्वाद देकर जायेगा।
भोज कराते समय ध्यान रखे कि ब्राह्मण जाति से नहीं बल्कि कर्म से भी हो। नित्य साधना, प्रतिदिन की साधना करने वाला हो और शास्त्रों में विद्वान हो।
महाभारत में भी दुर्योधन द्वारा श्री कृष्ण से भोजन करने के आग्रह पर कृष्ण ने कहा कि ”सम्प्रीति भोज्यानि आपदा भोज्यानि वा पुनैः” अर्थात जब खिलाने वाले का मन प्रसन्न हो, खाने वाले का मन प्रसन्न हो, तभी भोजन करना चाहिए, और मुझे तो आपसे पहले महात्मा विदुर को निमंत्रण प्राप्त हो गया है।
वो कहते है न जैसा अन्न, वैसा मन।
तो HindiHai.com में HindiHai.com के अंतर्गत, आपको यह जानकारी कैसी लगी? आप इस ब्लॉग को follow करना न भूले।
शंका समाधान –
- ऊपर दी गयी जानकारी बेटी के घर खाना क्यों नहीं खाना चाहिए, क्या मृत्यु भोज खाना चाहिए? और ब्राह्मण के घर भोजन क्यों नहीं करना चाहिए?, इन्हे मेरे माता-पिता ने संस्कार के रूप में दी है।
- समाज में इस तरह का भ्रम फैलाया गया है कि दलितों या जाति देखकर भोजन नहीं करना चाहिए लेकिन सत्य तो यह है कि जाति नहीं बल्कि कर्म देखकर भोजन नहीं करना चाहिए। क्युकी जिस कर्म का फल आप ग्रहण करेंगे वैसा उसका असर आपके जीवन पर होगा।
- भगवान् का प्रसाद किसी का भी अस्वीकार नहीं करना चाहिए। अपने इष्ट को ध्यान में रखकर, पहले उनको समर्पित करके प्रसन्न्तापूर्वक प्रसाद ग्रहण कर सकते है।
- अगर कोई शास्त्र से स्रोत मिलेगा तो यहाँ अवश्य डालूंगा।
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